मनोरंजन पुस्तकमाला ७ | Manoranjan Pustakmala-7

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Manoranjan Pustakmala-7 by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৬31 ओर डूबने लगा । लोग उसके निकालने के लिये दौड़े और उन्होने उसे इवते इवते निकाला | ग्यारहव वर्ष जंगबद्दादुर का यजश्ोपवीत संस्कार किया गया ओर इसी साल मई १८२८ में उसका विवाह एक थापा सदार की कन्या से हुआ । इसके बाद ही उसी साल बालनरखिह धनकुटा के हाकिम नियत इए ओर विवश हा उन्हें थापाधाली से घनकुटा ज्ञाना पड़ा। बालक जंग + वहादुर भी अपने पिता के साथ घनकुटा गया। उन दिनं जंगबहादुर कसरत, डड, मुगद्र ओर कुश्ती में बहुत दत्त चित्त था ओर दाँव पेंच में वह इतना बढ़ा हुआ था कि अपने से उयोदृ दूने तक का चह हंद युद्ध में चित कर देता था! घनकुटा में उस कसरत कुश्ती के अतिरिक्त शिकार खेलने कां भी अच्छा श्रवसर प्राप्त हुआ । यहाँ उसे कुछ युद्ध शिक्षा भी मिली और उसने गतका, फरी ओर चज्ुष वाख चलने का भौ अभ्यास किया । चार वर्ष बाद काजी बालनरसिह धनकुटा से दानि- लधूरा में तैनात हुए । यहाँ जंगबहादुर के शख्त्रप्येग- प्रणाली की डच्चित शिक्षा दी गई और उसे उस समय के अछ्ुसार शांकर, बाना, लेजिम और बकशी के हाथों की शिक्षा मिली और यहीं उसे बंदुक चलाने ओद निशाना लगाने का भी अभ्यांस कराया गया । यहीं दानिलधूरा में जंगबहांदुर सेना में भरती छुआ ।




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