मध्य सिधांत कौमुदी (१९५६) | Madhya Sidhant Koumudi (1956) Ac 6870
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
820
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १ )
বত লিহহাঁল हि । असव इसमें दुरे भगेक বিষণ হব बहुत सुन्दर झूफ के
किये नये हैं । अनेकों पेतिहासिक संकेत इसमें उपलब्ध होते हैं ।
(९ ) पुष्यमित्रो थजते ३। १।२६।
(२ ) हद पुष्यमिश्रं याजयामः ३ | २ । १२३ |
(३ ) जेयो बृषल: १। १। ५० ॥
( ४) अरुणद् यवनः साकेतम् , अरुणद्यवनो माभ्यमिकाम् ३!
13116
भौर छीजिए पेशानिक्ों के सजातीयाकरपणश सिद्धान्त का कैसा सुन्दर
संकेत है |
“अचेतनेष्बपि तद्यथा--लोष्टः क्षिप्तो बाहुबेगं गत्वा नैब तियंग
गण्छति नोध्वयमारोहति प्रथिबीविकार: प्थिबीमेव गच्छत्यान्तयंतः”
१।१।४६ |
पतञ्जलि परिचय
सह्टाभाष्यकारं पतञल्ि ने अपने परिचय के सम्बन्ध में अपने प्रन्य में कहों
कुछ नहों लिखा । किन्तु महामाप्य में पतञ्जलि के दो नाम प्रौर् पराये जावे है--
शोगर्दीय' भौर 'गोणिकापुत्र' । महासाव्य मे १।१।२१,६॥१। २३
और ७ । २ । १०१ सूरो को व्याख्या करते हुए “गोनर्दीयर्वाह” लिखा
गया है। इस पर भयुंहरि भ्रौर कैयट कदते है कि यह गोनर्दीय शब्द् पतञ्जलि
का पर्चाययाचक & | अर्थात् यहाँ साप्यकार ने अपना मत गोनदींय' नाम से
दिखाया है, भन्यत्रापि माप्यकार कौ पटी को देखते शुए यहा निश्चय होता
है। इसी प्रकार + । ४ । ५१ सूत्र के माप्य मे हिला है- “उभयथा गोणिका-
पुत्रः? । इस पर नागेश छिखते हैं कि- गोणिकापुत्रो भाष्यकार इत्याहुः,» +
इससे यह शात होता है--गोणिकापुन्न भी साप्यकार का पक नाम है। यदि
ये दोनों नाम साप्यकार पतस्रछि के हैं तो स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि पत्नि
गोमवप्रदेश के रइने घाले थे ओर उनकी माता का नाम गोणिका था ।
य गोग प्रदेश कहाँ है इस पर बहुत से विद्वान् गोंढा प्रदेश को गोनदे
साबते हैं। पऐतिहासिकों का मत है कि पुष्यमित्र का प्रधान राजधानी यद्यपि
पदना थी, किस्तु अयोध्या भो उसके राज्य का पक प्रधान मगर था (डपराजघानों
थी)। इसके मोडा प्रदेशवासी पतक्षक्कि का कद्ाचित् अयोध्या में निवास करते
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