सरल शब्दानुशासन | Saral Sabdanushasan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २ ) व्याकरण का प्रयोजन शब्दानुशासन या व्याकरण का प्रयोजन भाषा की श्रङ्ग-प्रत्यङ् जानकारी है । हम श्रपनी माप्रा स्वतः शद्ध बोल लेते है; परन्तु उस की बनावट की जानकारी हमें नहीं होती, जब तक व्याकरण का सहारा न लें। किसी ने कोई व्याकरण पढ़े त्रिना ही वह सब जान लिया, तो वह भी व्याकरण ही हुआ । वह श्रपनी जानकारी लिख-बता देता है, तो दूसरे भी जान लेते हैं | सब लोग अपने हाथ-पावों से ओर आॉख-कान आदि से ठीक-ठीक काम लेते हैं। इस के लिए हमे 'शारीर-शार्त्र! नही पढना 'पडता; परन्तु इन अद्भो की बनावट हमे 'शारीर-शास्त्र! से ही मालूम हो गी। शारीरशासत्री भी इन अंगो से उसी तरह काम लेता है, जैसे अन्य जन-प्राणी; परन्ठु उसे इन की बनावट आदि का पूरा ज्ञान होता ই | यही स्थिति भाषा और उस के शब्दानुशासन की हे | वैय्याकरण बोलता है--- १--राम रोगी खाता हैं--राम सोता है २--राम ने रोटी खाई---लड़को सोई और अन्य जन मी इसी तरह बोलते हैं। 'राम ने रोटी खाया! कोई नहीं बोलता और न “राम रोटी खाती है? ही कोई बोलता हे। परन्तु एक जगह खाता ह? क्यो, दुसरी जगह “खाई! क्यो १ यह बात साधारण जन नहीं जानते । इसका भेद शब्दानुशासन बताए गा | व्याकरण का एक प्रयोजन यह भी है कि श्नन्यभाषाभाषी इससे उस भाषा का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, व्याकरण से माषा समर लेते हैं | कभी-कभी शब्दानुशासन अनुशासन भी करता है, भाषा पर नही, भाषा का गलत प्रयोग करने वालो पर | यदि कोई अंग्रेजी भाषा का “फुट? शब्द हिन्दी में बोले, तो ठीक; यहाँ चलता है, सब समझ लेते




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