वृन्दावनलाल वर्मा | Vrindavanlal Verma
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
राजीव सक्सेना -Rajeev Saksena
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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बुन्देलसण्ड के प्रति अनुराग
बुन्देलखण्ड के प्राकृतिक सोन्दये के प्रति वृन्दावनलाल वर्मा में गहन
अनुराग भाव था। उनका सारा लेखन इस अनुराग भाव से प्रभावित है। एक
मित्र को उन्होंने एक बार लिखा :
“जब भी खाली होता हू राइफल लेकर निकल पड़वा हूँ और फिर
कई-कई दिन जगल-पहाड़ियों मे धूमा करता हूं! मन को कही कुंभी
प्रभावित करता दिख जाता है तो कागज पर उसके शब्दचित्र उकेर् लेता
हूँ। गढ़ कुण्डार' तो अधिकाश लिखा ही इस तरह गया। विराटां की
पद्मिनी लिखने के पूवं कई बार खजुराहो गया। कुछ अध्याय तो लिखे
भी वहीं रहकर
वर्मा जी का यह प्रकृति-प्रेम, वास्तव मे, बुन्देलखण्ड के जन-साधारण के प्रति
उनकी वाघ्तधिक प्रेम-भावना का हो प्रतीक है। वहाँ का जन-समाज লিখল
और अभावग्रस्त भले हो, अपनी देशभूमि को ऊँचे सास्कृतिक मूल्यों की सम्पदा
उसने ही दी। डॉ शिवकूमार भिश्च को एके पत्र मे उन्होंने लिखा :
“আছি আন कभी वुन्देलखण्ड के भीतरी स्थानों पर ছু ভী লী
आपको स्मरण होगा कि हमारा यह दरिद्र खण्ड कितता विभूतिमय हे।
हम लोगो के पास' पैसे नहीं है परन्तु हमलोग' फिर भी फार्मे और হাটু
गाते है, अपनी है, अपनी झीलो और नदी नालों के किनारे नाचते है और
अपनी रभीली' कल्पनाओ में मस्त हो जाते' हैं। हमारे यहाँ हाल में ही एक
'ईश्वरी कवि' हुआ है। इसका লাল भी यही था। इसकी फार्म प्रसिद्ध
है। गाड़ीवानों, चरवाहों, मल्लाहो से लेकर राजा महाराजा लोग तक
उसकी फागो को भूम-भूमकर गाते है। बिहारी के दोहो को तरह उसकी
फांगे भी छोटी-छोटी-सी है। बहुत सरल भाषा मे है ओज और रत ये ओत-
प्रात | प्रत्येक फाग किसी मनोभाव का एक सम्पूर्ण चित्र | ये ही नदियाँ,
नाले, भील और बुन्देलखण्ड के पर्वत वेष्ठित शस्य श्यामल खेत मेरी
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