जिनशतक | Jinshatak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
133
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर स्याद्वादग्रथमारा ।
गतप्रत्याशताईः |
भासते विभुतास्तोना ना स्तोता भुवि ते सभाः।
1 রসি
याशश्रिताःस्तुत गीत्या बु नुत्या गीतस्तुताःधिया॥१०॥
भासते इति.!.अस्य छाकस्याद्धं पक्त्याकारेण विलिख्य क्रमेण
पठनीयम् । कमपटठे यान्यक्षराणि विपरतपोठेपि तन्येवाक्षराणि
यतस्ततो मतप्रत्यागताद्ध । एव द्वितीयार्डमपि योज्यम् । হন ভব
गतप्रत्यागताद्धश्टोकाः दु्टव्या |
भासते शोभेत । নিলীলাঘ विभुता स्वामित्वम् । तया ई
अस्ता क्षि्ा. ऊना न्यूना यकामिः ता विभुतास्ताना । ना
पुरुष । स्तोता स्तुते क्तौ । भुवि लोके । तेतव | खमा
समवसृती , शसन्ता दृष्ट्या । या यद् टग्रन्तस्य प्रयोग । भरिता
आश्रिता । हे स्तुत पूजित । गीत्या गेयेन । नु वितके । नृत्या स्तवेन
गौताश्च ताः स्तुताश्च गीतस्तुता । भरिया ल्क्म्या । भिया आश्रिता
या सभा. गीत्या गीताः नुत्या स्तुता सजाता ना स्तोता पुरूष,
मावते ॥ १० ॥
हे पूज्य ' जो पुरुष आपकी स्तुति करता है, वह तीर्थकर
पद पाकर इस लोकसे आपकी समाल उस समवसरणरूप सभाको
सुशोभित करता है कि जो सभा अतरगबहिरग छक्ष्मासे सुशो-
भित है तथा जिसका वणेन बड़े वद स्तोतरोसे किया जाता है और
इन्द्र चक्रवर्ती आदि बड़े २ परुषोके समस्कार करनेसे पृल्य है
तथा जिसने अन्य सब सभाये अस्त (मात) करदी ह ॥ १०॥
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