वे क्रान्ति के दिन | Way Kranthi Ke Din
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
111
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७) घर के दूसरे भाई-बहिन घर में हाथ से ही काम करें । मौकरों
का उपयोग कम से कम होना चाहिए 1
(८) सोफा सेट, अलमारिया या चमकीली कुर्सियां बैठने के लिए
नही रखनी चाहिए ।
(६) मत्रियों को किसी प्रकार के व्यसन तो होने ही नही चाहिएं।
(१०) ऐसे सादे, सरल और श्राध्यात्मिक विचार रखने वाले जनता
के सेवकों की जनता ही रक्षा करेगी । प्रत्येक मंत्री के बंगले
के आसपास श्राज जो छः या इससे अधिक सिपाहियों का
पहरा रहता है वह अहिसक मंत्रिमंडल को बेहुदा लगना
चाहिए । इससे बहुत खर्च बच जाएगा ।
(११) लेकिन मेरे इन सब्र विचारों को मानता फौन है + फिर भी
मुझसे कहे बिता नहीं रहा जाता वयोकि भूक साक्षी रहने
की मेरी इच्छा नहीं है ।
महार्मा गांधी के उपयुक्त विचारों को पढ़कर पाठक गण यह
अनुभव करेंगे कि राष्ट्र में समाजवादी प्रणाली की स्थापना केवल
कानून बनाने से नहीं हो सकती; उसके लिए एक सार्वजनिक झार्दो- ६
सन की आवश्यकता है। स्वराज्य-प्राप्ति के लिए जितनी त्याग
तपस्या की श्रावर्यकता थी उससे कटी श्रधिक त्याग-तपस्या करनी
होगी । भ्राज तो स्वामित्व की भावना इतनी भयंकर रूप से 'ैलती
' चली जा रही है कि यदि इसवी रोवथाम न हो सकी तो देश नवाबी
के रास्ते पर चल पड़ेगा । जो लोग समाजवाद मे विश्वास रखते हैं
उनका समते पहला कर्तव्य यह है कि वो धपते प्रातो के
बच्चों वे साव भ्रपने बच्चों जसा সী श्रपने नौकर-मयूसो के साध
भाई-मतीजों ऊँसा व्यवह्वार करे । आज तो हमारा खाना बनाने वाला
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