वे क्रान्ति के दिन | Way Kranthi Ke Din

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) घर के दूसरे भाई-बहिन घर में हाथ से ही काम करें । मौकरों का उपयोग कम से कम होना चाहिए 1 (८) सोफा सेट, अलमारिया या चमकीली कुर्सियां बैठने के लिए नही रखनी चाहिए । (६) मत्रियों को किसी प्रकार के व्यसन तो होने ही नही चाहिएं। (१०) ऐसे सादे, सरल और श्राध्यात्मिक विचार रखने वाले जनता के सेवकों की जनता ही रक्षा करेगी । प्रत्येक मंत्री के बंगले के आसपास श्राज जो छः या इससे अधिक सिपाहियों का पहरा रहता है वह अहिसक मंत्रिमंडल को बेहुदा लगना चाहिए । इससे बहुत खर्च बच जाएगा । (११) लेकिन मेरे इन सब्र विचारों को मानता फौन है + फिर भी मुझसे कहे बिता नहीं रहा जाता वयोकि भूक साक्षी रहने की मेरी इच्छा नहीं है । महार्मा गांधी के उपयुक्त विचारों को पढ़कर पाठक गण यह अनुभव करेंगे कि राष्ट्र में समाजवादी प्रणाली की स्थापना केवल कानून बनाने से नहीं हो सकती; उसके लिए एक सार्वजनिक झार्दो- ६ सन की आवश्यकता है। स्वराज्य-प्राप्ति के लिए जितनी त्याग तपस्या की श्रावर्यकता थी उससे कटी श्रधिक त्याग-तपस्या करनी होगी । भ्राज तो स्वामित्व की भावना इतनी भयंकर रूप से 'ैलती ' चली जा रही है कि यदि इसवी रोवथाम न हो सकी तो देश नवाबी के रास्ते पर चल पड़ेगा । जो लोग समाजवाद मे विश्वास रखते हैं उनका समते पहला कर्तव्य यह है कि वो धपते प्रातो के बच्चों वे साव भ्रपने बच्चों जसा সী श्रपने नौकर-मयूसो के साध भाई-मतीजों ऊँसा व्यवह्वार करे । आज तो हमारा खाना बनाने वाला १६ 1?




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