सम्बोधि | Sambodhi

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आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi

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मुनि नथमल - Muni Nathmal

मुनि नथमल जी का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के टमकोर ग्राम में 1920 में हुआ उन्होने 1930 में अपनी 10वर्ष की अल्प आयु में उस समय के तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालुराम जी के कर कमलो से जैन भागवत दिक्षा ग्रहण की,उन्होने अणुव्रत,प्रेक्षाध्यान,जिवन विज्ञान आदि विषयों पर साहित्य का सर्जन किया।तेरापंथ घर्म संघ के नवमाचार्य आचार्य तुलसी के अंतरग सहयोगी के रुप में रहे एंव 1995 में उन्होने दशमाचार्य के रुप में सेवाएं दी,वे प्राकृत,संस्कृत आदि भाषाओं के पंडित के रुप में व उच्च कोटी के दार्शनिक के रुप में ख्याति अर्जित की।उनका स्वर्गवास 9 मई 2010 को राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ।

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ सम्बोधि कृत्वा कण्डूयन पाद , दधता भूतले पुन । शशको निम्नगोऽलोकि, त्वया तत्व विजानता ।२२।१ तदानुकम्पिना तत्र, न हत स्यादसौ मया इति चिन्तयता पाद, त्वया सधारितोऽन्तरा ।२३।। २२-२३ खुजलान के बाद जब तू पाँव नीचे रखने लगा तब सूने वहा (पाँव से खाली हुए स्थान म) खरगांश को बैठ देखा । तू अहिसा के तत्त्व को जानता था। तुझ में अनुकम्पा (अहिसा) का भाव जागा । खरगोश मरे पैर स कुचला न जाए --यह सोच तून पाँव को बीच म ही थाम लिया। शुभेनाध्यवसायेन, लेद्यया च विशुद्धया। ससार ॒स्वल्पता नौतो, मनुष्यायुस्त्वयाजितम ।२४।। २४ शभ प्रध्यवसाय (मनकी सूक्ष्म परिणति ) और विशुद्ध सक्या (मनोभाव) से तून समार-भ्रमण को स्वल्प क्या और मनुष्य हान योग्य ्रायुप्य कम के परमाणुभ्रा का प्रजन किया। सा्धदरयदिनेनाऽथ, दव स्वय হাল गत । निधूम जातमाकाश्ञ-मभया जन्तवोऽभवन ।२५।। २५ ढाईदिनके बाद दावानल अपन आप शान्त हुआ । आकाश निर्धम हो गया और वे वन्य पशु तिभय हो गए। स्वच्छन्द गहने शास्ते, विजह्ूू पशवस्तदा। पलायित शादाकोऽपि, रिक्त स्थान व्वयेक्षितम 11२६।। २६ श्रव वन्य पशु उस शान्त जगल म स्वतन्त्रतापूवकं घूमने फिरने लगे। वह खरगोश भी वहाँ से चला गया । पीछ तूने वह स्थान खाली देखा।




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