तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा | Tirthkar Mahavir Aur Unki Aachary Parampara

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Book Image : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा  - Tirthkar Mahavir Aur Unki Aachary Parampara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कृष्णा असावस्था, वीर-निर्वाण संवत्‌ २५०२, दिनाझु १३ नवम्बर १९७५ तकं पुरे एक वषं मनायी जातेगी । यह्‌ मङ्गल-परसङ्ग भो उक्त ग्रन्थ-निर्माणके लिए उत्प्रेरक रहा | अत्तः अविल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषदुने पाच वषं पूवं इस महाद्‌ दुलेभ अवसरपर तीर्थंकर महावीर और उनके दर्शनसे सम्बन्धित विशाल एवं तथ्यपूर्ण ग्रन्थके निर्माण और प्रकाशनका निश्चय तथा संकल्प किया | परिषदने इसके हेतु अनेक बेठकें कीं और उनमें ग्रन्थकीं रूपरेखापर गम्भीरतासे उहापोह करिया । फलतः ग्रन्थका नाम 'तोधङ्कुर महावीर ओर उनकी आचायं- परभ्यरा' निर्णति हज भौर लेखनका दायित्व विद्रत्परिषद्के तत्कालीन अध्यक्ष, अनेक ग्रन्थोके लेखक, मूर्घन्य-मनीषी, चायं नेमिचन्द्र शास्त्री आरा (बिहार) ने सहषं स्वीकार क्रिया । आचायं श्ास्तरीने पांच वषं लगातार कठोर परिश्रम, अद्धत छ्गन ओर असाधारण अध्यवसायसे उसे चार खण्डो तथा लगभग २००० (दो हजार) पृष्ठोमे सुलित कर्के ३० सितम्बर १९७२ को विद्रत्परिषद्को प्रकाश- नाथं दे दिया | विचार हुआ कि समग्र प्रन्थका एक बार वाचन कर लिया जाय । আনাম शास्त्र स्याद्वाद महाविद्यालयकी प्रबन्धकारिणीको बैठकमें सम्मिकृत होनेके लिए ३० सितम्बर १९७३ को वाराणसी पधारे थे। और अपने साथ उक्त ग्रन्थके चारों खण्ड लेते आये थे | अत. १ अक्तुबर १९७३ से १५ अक्तूबर १५७३ तक १५ दिन वाराणसीमे ही प्रतिदिन प्रायः तीन समय तीन-तीन घण्टे ग्रन्थका बाचन हुआ । वाचनमें आचायं शास्त्रीकै भतिरिक्त सिद्धान्ताचायं श्रद्धेय पण्डित केलाशचन्द्रजी शास्त्री पूवं प्रधानाचायं स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी, डोक्टर ज्योतिप्रसादजी कखन ॐ भौर हम सम्मिलित रहते थे । आचायं शस्त्र स्वयं बाचते थे और हमलोग सुनते थे। यथावसर आवश्यकता पड़ने पर सुझाव भी दे दिये जाते थे। यह वाचन १५ अक्तूबर १९७३ को समाप्त हुआ और १६ अक्तूबर १९७३ को ग्रन्थ प्रकाशनार्थ महावीर प्रेसको दे दिया गया । प्रन्थ-परिचय इस विशार एवं असामान्य प्रन्थका यहाँ संक्षेपमे परिचय दिया जाता है, जिससे मन्थ कितना महृत््वपूणं है भौर रेखकने उसके साथ कितना अमेय परि. श्रम किया है, यह सहजमें ज्ञात हो सकेगा । यहाँ चतुर्थ खण्ड का परिचय प्रस्तुत्त है-- १४ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा




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