भारतीय शिक्षा का इतिहास | Bhartiya Shiksha Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मय समय . समा कस... अध्याय २ उत्तर वंदिक कालीन शिक्षा १००० ई० पु० से २०० ई० पु साधन वैदिक प्रुग में दिक्षा-क्षेत्र में पुरोहितवाद का प्रभाव बहुत बढ़ गया था श्र यज्ञ सम्बन्धी ज्ञान का श्रत्यन्त विस्तार हो गया था । किन्तु ऐसे जिज्ञासु भी थे जो जीवन के ऊपर रहस्यमयी दृष्टि रखते थे श्र ईरवर आत्मा जीव श्रौर सष्टि इत्यादि गम्भीर तत्वों पर चिन्तन करते थे । जन्म व मरण के सिद्धान्तों का भी विश्लेषण किया जा रहा था । उत्तर-वैदिक युग में यह प्रवृत्ति अधिक वेगवती हो उठी । दार्शनिक लोग जंगलों की छाया में शून्य एकान्त में बैठकर झ्रात्मानुभव करते थे । उनके भ्रनुभवों का प्रकटीकरण ब्राह्मण तथा आरण्यक नामक रचनाओं के रूप में हुमा । झारण्यक वाणाप्रस्थ ऋषियों के ब्राह्मण-ग्रन्थों के समान थे । इनके उपरान्त उपनिषदों का सृजन हुआ । उपनिषद्द भारतीय प्राचीन सभ्यता की महान्‌ निधि हैं । जिस महान्‌ दार्शनिक रहस्य का उद्घाटन उपनिषदों में हुमा वह वेदान्त कहलाया । यह वेदिक ज्ञान का चरम विकास था । झत्मा औऔर ब्रह्म के रहस्य का उपनिषदों में अत्यन्त सूक्ष्मता से विद्लेषण किया गया है । इस प्रकार ब्राह्मण श्रारण्यक श्रौर उपनिषद्‌ वे प्रमुख साघन हैं जिनसे हमें उत्तर-वैदिक काल की सभ्यता व शिक्षा का हाल ज्ञात होता है । उत्तर- वैदिक शिक्षा का प्रसार शाखा चरण परिषद्‌ कुल श्रौर गोत्र इत्यादि संस्थाओं के द्वारा । ये संस्थायें घामिक तथा साहित्यिक-संस्थायें थीं जो कि वैदिक काल में स्कूलों का कार्य कर रही थीं । प्रसार इस प्रकार वेद संहिताश्ों तथा ब्राह्मण श्रारण्यक श्रौर उपनिषदों का ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होने लगा । यहाँ तक कि वह देश के सम्पूर्ण कोनों में फैल गया । वैदिक पाठलालाओं का देश भर में जाल सा फैल गया तथा भिन्न-भिन्न




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