आधुनिक भारत के निर्माता | Adhunik Bharat Ke Nirmata

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Adhunik Bharat Ke Nirmata by काका साहब कालेलकर - Kaka Saheb Kalelkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मर काका साहब कालेलकर बचपन दत्तू सबसे छोटा था । इसलिए सबका प्यारा था । जिसकी परवरिश बहुत प्यार में होती है वह अक्सर जल्दी बड़ा नही होता । बड़ा होने मे देरी लगा देता है। दत्तू चार-पांच साल का हुआ तब तक उसे इस का ख्याल तक नहीं था कि खाना अपने हाथ से खाना चाहिए । उसे हमेशा या तो दादी खिलाती थीं या मां जीजी बिलाती थी या भाभी दत्त के बड़े भाई जिनको दत्त बाबा के नाम से पुकारता था कभी-कभी इससे चिढ़ जाते और कहते इतना बड़ा कंट-जसा हो गया हैं फिर भी यह अपने हाथ से नहीं खाता । इस तरह की टीका-टिप्पणी सुनकर दत्त को बुरा तो लगता था पर उसके दिमाग में यह बात न आती कि उसे अपनी आदत बदलनी चाहिए और खाना अपने हाथ से ही खाना चाहिए । एक बार घर के लोगों ने एक षड़यत्र रचा । दत्तू सारा दिन उछलकूद करके शाम को थककर सो गया था । भोजन का समय हुआ तब उसे उठा दिया गया । रसोई घर मे उसे ले जाकर उसके सामने परोसी हुई एक थाली ख्ख दी गई । फिर उसके तीसरे भाई विष्णु ने चीमी से कहा चीमी आज दत्तू को तू खिला । चीमी दत्तू की भतीजी थी उससे कुछ डेढ़ साल छोटी । चीमी ने हाथ मे एक कौर लिया और दत्तू के मुंह के सामने धर दिया । दत्तू ने मुंह खोलकर कौर ले लिया । तुरंत चारों ओर तालिया बज गई । सब खिलखिलाकर हंस पड़े और बोले देखो भतीजी चाचाजी को खिला रही हैं तब भी उसे शर्म नहीं आती । दत्त झेंप गया । उसने दूसरा कौर लेने से इंकार कर दिया और उसी क्षण निश्चय किया अब अपने हाथ से ही खाऊंगा । मगर किस हाथ से खाया जाता है उसे क्या मालूम दत्तू ने सामने बेठ हुए लोगों का अनुकरण किया तो उसका बांया हाथ थाली मे पड़ा । विष्णु मे फिर ताना कसा देखो इस घोड़े को यह भी मालूम नही कि दाहिना हाथ कौन-सा है और बांया कौन-सा । दो-तीन बार हाथों की गड़बड़ी हुई तब दत्तू ने तय किया कि इस शास्त्र मे निनी बुद्धि किसी काम की नहीं है । खाना खाने बठने से पहले किसी से पूछ




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