हरिवंशपुराण समीक्षा भाग 1 | Haripanshpurana Samiksha Bhag 1

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Haripanshpurana Samiksha Bhag 1  by जुगलकिशोर मुख्तार - Jugalakishor Mukhtar

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द * कै, ' ` समीक्षा) ५ (१ ) थह, फभो घिश्यास नही किया जा सकता है कि सतयुग में भी ऐसे ऐसे भयानक पाप होते हों कि कन्या का पिता रुपय हो अपनी पुत्री पर आशक्त होजावे भौर उत्ता भ्रदण फरले, ऐसी ऐसी दुर्घटनाओं का सम्बन्ध सतयुग से जोड़ना घारतव मे, सतयुग को कलइड्टित' करना হা कथा पटने सुनने बालों के हदय से महांपापों की घृणा फी हूटाना ' ई छ ' '(‰) षडाभारीशोकतोध््सवात का है कि यद्द कथा किसी नीच शंद्र पु रुप कौ नहीं बनाई जाती है घस्कि यद कथा प्फ स्त्री रज्मा की कद्दी जाती है जा निधमे अददरण फरने फा परम-अधिकारी और माक्ष ज्ञाने का परमप्रात्र समभा जाता + है भौर स कथा मतो यहा तक्ष राजव किया गया किं यह महादुष्स्य खास शीतीर्थंकर भगवान के सगे पाते का बताया जाता है जिससे पढ़ने छुनने घालों पर यहुत ही घुरा प्रभाव पड़ता दे, यदि घास्तव में भी ऐसी दुघंटना हुई थी तो इस ' घर्म अन्ध-में नहीं लिणी जानी चाहिये थी; हरिव के और भी तो अनेक राज़ाओं फी कथा इस पंम्ध में नदो लिखी श्दहै। ` ~ -४ । “ , -राजा वसु की कथा। * इस ही दरिवशमें एफ राजा पसु हुआ, यह वसु क्षीरकद्म्च नामफे एफ प्राह्मण से चिया पहा था और उस दी फे साथ क्षीरकद्म्व का बेटा पर्वत और नारद्‌ नाम फा पक ओर विद्धी भी पढ़ता था। '' । क्षीरकदम्यं ती एक 'दिगभ्यर' सुनि का शिप्यं होगयो भौर नारद अणुत्रती धावक होया परन्तु ` पर्वत फ दिगभ्यर मुनि से अति देप रहा यर उसने उनके प्रास जाना भी पसन्द न किया, धउु राजा बडा सत्यवादी था इस कारण उसके घ- |. সি মামা धोने की धरम चारों तरफ़ फलीःहुई थी । / ४1 -. ; पर्च॑त घेद' का उपदेश दिया करता था एक दिन नारद के सामने भी उसने यह उपदेश दिया.कि वेदं भं वक्री का वद्या यत्न में-.होम फरना लिखा है, नारद ने कहा कि वेद .धाक्य फा ऐसा-अर्थे'नद्दी है, इसपर उन दोचों,में घित्राद होगया और, राजा घप्ठ के द्वार में दोनों छा शास्ार्थ होना रद्रा, रात्रि को पवेत फी माता राजा, के घर गई मौर गुरानी होने का,दवाव डालकर उससे यद वचन ले लिया फि यद्यपि प्रत.फा बताया एआ भर्थ झठा है तो भी सभा परं पव॑त फो जिताय जावेगा | ' » शाखार्थं होने पर राजाने ऐसो' दी किया और पंत को ही जिताया, उस ही ঘুম বালা হ্যা लिंदासन नीचे भूमि में घल गया और पाताख में जाकर गिरा और स पल कक




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