अध्यात्म विज्ञा -प योग प्रवेशिका | Adhyatma Vigya-yog Praveshika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.68 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मर्यादापालन की प्रेरणा दी है। यह ससार मे व्यक्तिगत और
सामूहिक रूप से सुख-शांति देने वाली संस्कृति का विज्ञान ही
आध्यार्मिक विज्ञान है । उसके सिद्धान्त है--भात्मा अमर है,
दरीरादि अन्य सब वस्तुएँ नादवान है, इसलिये आत्मा को
अधिक महत्व देना चाहिये और शरीर को उसको प्रगति का
साधन मात्र समभक्रना चाहिये । इसलिये उसकी भी उपेक्षा
नहीं करना चाहिये । आत्मा जुद्धावस्था में पुर्ण ज्ञानी, पूर्ण-
सुखी है परन्तु ससार मे उस पर कमं के आवरण
उसके युणों को आच्छादित करके उसे पूर्ण सुख, पूर्ण ज्ञान
नही प्राप्त करने देते और यह आवरण प्राणी की क्रियाओं
की प्रतिक्रिया रूप है । इसलिये मनुष्य को अपने जीवन में
प्रत्येक का्ये में सावधान रहना चाहिये जिससे उसके कार्यों
की प्रतिक्रिया उसके लिये दुखदाई न हो और यह सावधान
रहने का मागे ही योग है । इस प्रकार यह अध्यात्म और
योग कोई आकादा कुसुम नही है भौर न ऊपर से ओढने की
चादर सात्र है और न साधु बाबाओ के रटने का सत्र है किन्तु
संसार के प्रत्येक व्यक्ति और समूह के इसी जीवन में सुख
शान्ति से रहने का विज्ञान और मागे है अर्थात् उन सदगुणों
ओर आत्मनिर्मलता के उपाजंन का मागें जो मनुष्य के इसी
जीवन में सुख घाति को बढाता हुआ पूर्णता की ठोर अर्थात्
मोक्ष तक पहुँचा देता है ।
आत्मा अमर है दारीर नादावान है । और आत्मा जन्म
जन्मातरों मे अनेक दरीर धारण करता हुआ और उसे त्याग
करता हुआ, इस मनुप्य जन्म में आया है । और यह तो प्रगट ही
है कि मनुष्य जन्म अन्य प्राणियों के जन्म या जीवन की अपेक्षा
भर
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