मातृभाषा हिंदी शिक्षण | Matrabhasha Hindi Shikshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मातृभाषा हिंदी शिक्षण कैप्सूल 1.2 मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्य तथा निर्धारित न्यूनतम अधिगम स्तर व्यवहारगतत उद्देश्य इस कैप्सूल के अध्ययन करने के पश्चात्‌ आप 1... प्राथमिक्र तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा शिक्षण के उदुदेश्यों को समझ कर उनमें अन्तर कर सकेंगे। मातृभाषा में प्राथमिक स्तर के लिए निर्धारित न्यूनतम अधिगम स्तरों का कक्षावार वर्णन कर सकेंगे। पछि 1.2.1 शिक्षण के उद्देश्य अब तक आप मातृभाषा की प्रकृति उसके महत्त्व तथा पादूयक्रम में उसके स्थान के विषय में अध्ययन कर चुके हैं । आइए अब मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्यों की चर्चा करें । मातृभाषा भाव-प्रकाशन तथा भाव-ग्रहण करने का महत्त्वपूर्ण साधन है। यह वह शक्ति है जिसके माध्यम से मानव स्वयं को दूसरों के सप्रक्ष प्रस्तुत करता है और दूसरों के विचारों को समझता है । प्रारंभ में बालक अपने परिवार के सदस्यों से अनौपचारिक ढंग से मातृभाषा में सुनना और बोलना सीखता है। परन्तु मातृभाषा के मानक रूप की विधिवत शिक्षा उसे विद्यालय में ही प्राप्त होती है । वहाँ ही उसे भाषा के चारों कौशलों --सुनना बोलना पढ़ना और लिखना--को औपचारिक रूप से विकसित करने के अवसर मिलते हैं। भाषा और साहित्य का ज्ञान भी बालक को वहीं प्राप्त होता है। इससे उसे भाषा के तत्वों वैचारिक विषयवस्तु रचना के विविध रूपों तथा साहित्य की विविध विधाओं की जानकारी मिलती है। बालक की सुजनात्मकं शक्तियों साहित्यिक रुचि तथा सद्वृत्तियों का विकास करना भी मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्यों के अंतर्गत आता है। प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा इस दृष्टि से हम प्राथमिक प्रा . तथा उच्च प्राथमिक उ.प्रा स्तर पर मातृभाषा के रूप में हिंदी-शिक्षण के उद्देश्यों को चार भागों में बाँट सकते हैं-- क ज्ञानात्मक ख कौशलात्मक गो सृजनात्मक और घ अभिवृत्यात्मक । क ज्ञानात्मक उद्देश्य 1 भाषा के तत्वों का ज्ञान प्राप्त करना प्रा. तथा 2. वैचारिक विषयवस्तु का ज्ञान प्राप्त करना प्रा. तथा उ.प्र. 3. रचना के विविध रूपों का ज्ञान प्राप्त करना तथा उ.प्ा ख कौशलात्मक उद्देश्य _ 4..बोध सहित सुनने की योग्यता प्राप्त करना प्रा तथा उमा. 5 प्रभावी ढंग से बोलकर अपनी बात कहने की योग्यता प्राप्त करना प्रा तथा उ.प्रा. डर बोध सहित पढ़ने की योग्यता प्राप्त करना प्रा की उमा. 7 प्रभावी ढंग से लिखकर अपनी बात कहने की. योग्यता प्राप्त करना प्रा तथा उ.प्रा. ग सृजनात्मक उदुदेश्य 8. भाषा-कौशलों में मौलिकता लाने की योग्यता प्राप्त करना उ.प्रा. घ अभिवृत्यात्मक उदुदेश्य 9. मातृभाषा तथा उसके साहित्य में रुचि लेना प्रा. तथा उ.प्रा. 10. सद्वृत्तियों का विकास करना प्रा. तथा उ.प्रा. शिक्षा-मनोवैज्ञानिक मानव व्यवहार के तीन पक्ष मानते




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