विश्वसभ्यता का संक्षिप्त इतिहास भाग 1 | Visvashabhyata Ka Sankshipta Itihasa Part 1

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Visvashabhyata Ka Sankshipta Itihasa Part 1 by विन्देश्वरी प्रसाद सिंह - Vindeshwari Prasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५ साधनों से वह अपनी जीविका चला लता है । पर मानव शिशु पैदा लेने पर अपने को एकदम असहाय पाता हैं । वह हथियारों के साथ ঘা লী জবা हं, ओर न उम्‌ के बढ़ने के साथ उसके शरीर पर हथियार व औजार उग आते हैं। जब मन्‌ष्य पैदा लता हे तो उसके पास नंगा शरीर व खाली हाथ छोड कर कुछ नहीं होता । जंगली जानवरों के बीच प्राकृतिक विपदाओं से घिरा रह कर मनृष्य आज सभ्यता की जिस ऊँचाई पर पहुँच सका हैँ यह विश्व के इतिहास की सबसे बड़ी आश्चर्यजनक और उत्साहवर्धक घटना हूँ । समाज ओर सभ्यता इसका रहस्य है मनुष्य को हथियार बनाने की योग्यता और विषम परिस्थितियों से संघषं व सहयोग करने कौ क्षमता । पर इतना ही सभ्यता के क्रमिक विकास के लिए प्रर्याप्त नहीं हैं । मनृष्य एक सामाजिक प्राणी है, और जब से वह इस पृथ्वी पर पंदा हुआ हूँ बराबर समाज में ही रहा हे । समाज और मनुष्य की उत्पत्ति साथ-साथ ही हुई हं । प्रत्यक मनुष्य कौ क्रिया व प्रतिक्रिया की छाप दूसरे मनुष्यों पर पड़ती है, और वह जो कुछ भी करता ह उसमें सामाजिक दृष्टिकोण अवद्य रहता हं । मनृष्य का वैयक्तिक स्वाथं ओर समाज के हित मे घनिष्ट सम्बन्ध हं । प्रत्येक मनुष्य का व्यवहार व मनृष्य का पारस्परिक वर्ताव समाज के नियम से अलग नहीं होता हू । मनृष्य जो कुछ भी करता हूँ, जो नई चीज इजाद करता है, नया विचार प्रकट करता हूं, ये सब की यथार्थता तभी होती हूँ जब समाज या समाज का कोई विशिष्ट भाग उसे अपनाता हैं। व्यक्ति और समाज का एक दूसरे पर इस तरह निर्भर करना सभ्यता के विकास के लिए जरूरी हैं! मनुष्य का सामाजिक- प्राणी होने का एक और छाभ हँं--सभ्यता की प्रगति बराबर होती रही हूँ, प्रस्तरयुग (51072 28८ ) से आज तक । प्रत्येक युग बीते हए यूम्रों के अनुभव व वृद्धि का उत्तरा-




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