रावबहादुर | Raavbahadur

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Raavbahadur  by दुलारेलाल भार्गव - Dularelal Bhargav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav

Add Infomation AboutShridularelal Bhargav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मोलियर का परिचय १२ रह गए । सैव उसकी प्रशंसा होने लगी । यटा तक कि उसकी सास्य-कला-निपुणता की वात राज-घराने तक पहुँची । उसे बादशाह लुई को अपनी कला-निपुणता दिखलाने का अवसर प्राप्त हुआ । मोलियर की नाख्य- कला-चातुरी देखकर लुई प्रसन्न हो गया, ओर प्रसाद स्वरूप मालियर को अपना जीवन श्रत समय तक खुख- पूवैक विताने के लिये राजाश्रय मिल गया । राजा की कषा हुई, तो प्रज्ञा म॑ सम्माव होना ही चाहिए । मंडली बहुत बड़ी हो गई, ओर उसका नाम भी बदल दिया गया। इस प्रकार मोलियर का सितारा चमक उठा । मोत्ियर को सफलता तो हुईं, पर सफलता के साथ-साथ उसकाः कार्य-भार बहुत बढ़ गया | अपनी नाटक-मंडली का प्रमुख वही था। इसके अतिरिक्त मंडली का प्रधान पात्र भी था। इन ज़िम्मेदारियों को निबाहते हुए भी उसको नाटक लिखने का समय मिल जाता था । उसकी शक्ति ओर कार्य-कुशलता ने यह सब भार उठा लिया । श्रगले दस वर्षो में उसने २८ नाटक लिखे । ये नाटक एक-से-एक बढ़- चढ़कर हैं, और इन्हीं के कारण आज़ वह संसार के सर्वोच्च नाघ्यक्ारो मे गिना जाता दै । मोल्लियर केश्रत्यधिक परिश्रम का फल यह हुआ कि बुद्धि ओर शरीर, दोनों ही, कार्ये- भार से दबकर, धीरे-धीरे जवाब देने लगे । शरीर में रोग ने धर कर लिया | एक दिन, फ़रवरी, सन्‌ १६७३ ई० को,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now