लाटीसंहिता | Laati Sanhita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(८ १६)
नई नई मोलिक रचनाएँ--तय्यार करनेमें समर्थ हांना चाहिये” बह बात
उनमें जरूर थी और ये दोनों ग्रन्थ उसके ज्वरत उदाहरण जान पडते
हैं। इन ग्रन्थोंकी लेखनप्रणाली और कथनशेलीं अपने ढंगकी एक ही है !
लाटीसोहिताकी सान्धियोंमें राजमल॒कों ' स्याद्वादानक्द्य-पद्य-गद्य-विद्या-
विशारद-विद्वन्मणि ” लिखा है ओर ये दोनों कृतियाँ उनके इस
विशेषणके बहुत कुछ अनुकूल जान पड़ती हैं । लाटीसोहिताको देखकर
यह नहीं कहा जा सकता कि पंचाध्यायी उसके कत्तास भिन्न किसी ओर
ऊँचे दर्जके विद्वानकी रचना हे । अस्तु ।
में समझता हूं, ऊपरक इन सब उल्ेखों प्रमाणों अथवा कथनसमुन्चय
परसे इस विषयमें कोई सन्देह नहीं रहता कि पंचाध्यायी ओर लाटी-
संहिता दोनों एकही विद्वानकी दो विशिष्ट रचनाएँ हैं, जिनमेंसे एक
पूरी ओर दूसरी अघूरी है । पूरी रचना लाटीसंहिता है ओर उसमें उसका
कर्ताका नाम बहुत स्पष्टरूपसे “ कविराजमल् ? दिया है । इसलिये
पंचाध्यायीको भी ' कविराजमछ्ठ ” की कृति समझना चाहिये, ओर यह
बात बिलकुल ही सुनिश्चित जान पड़ती है ।
लाटीसंहिताको कविराजमहन बि० सं० *६४१ में आश्विन शुक्कु
दइशभी रविवारके दिन बनाकर, समाप्त किया है । जेसा फे उसकी
प्रशस्तिके निम्नपद्मोंसे प्रकट हैः---
श्रीनृपतिविक्रमादित्यराज्ये परिणते सति ।
सषैकचत्वारिशद्धिरब्दानां शातषोडश ॥ २ ॥
तत्राप्यश्चिनीमासे सितपक्ष शुभान्विते ।
दृशम्यां दाशरथे: (श्च) शोभन रविवासरे ॥ ३॥
२ एक सन्धि नमूनेके तोर पर इस प्रकार हैः-इते श्रीस्पाद्गादानवद्यपथ
बियाविशारदविद्रन्मणिराजम्हविरचिनायां श्रावकाचारापरनाम लाटीसंहितायां
साधुदूदात्मजफामनमनःसरोजारविंद्विकाशनेकमार्तण्डमण्डलायमानाया॑ कथामस्त
अुर्णन्ं नाम प्रथमः सर्गः । ॥
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