लाटीसंहिता | Laati Sanhita

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Laati Sanhita  by दरबारीलाल न्यायतीर्थ - Darabarilal Nyayatirth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८ १६) नई नई मोलिक रचनाएँ--तय्यार करनेमें समर्थ हांना चाहिये” बह बात उनमें जरूर थी और ये दोनों ग्रन्थ उसके ज्वरत उदाहरण जान पडते हैं। इन ग्रन्थोंकी लेखनप्रणाली और कथनशेलीं अपने ढंगकी एक ही है ! लाटीसोहिताकी सान्धियोंमें राजमल॒कों ' स्याद्वादानक्द्य-पद्य-गद्य-विद्या- विशारद-विद्वन्मणि ” लिखा है ओर ये दोनों कृतियाँ उनके इस विशेषणके बहुत कुछ अनुकूल जान पड़ती हैं । लाटीसोहिताको देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि पंचाध्यायी उसके कत्तास भिन्न किसी ओर ऊँचे दर्जके विद्वानकी रचना हे । अस्तु । में समझता हूं, ऊपरक इन सब उल्ेखों प्रमाणों अथवा कथनसमुन्चय परसे इस विषयमें कोई सन्देह नहीं रहता कि पंचाध्यायी ओर लाटी- संहिता दोनों एकही विद्वानकी दो विशिष्ट रचनाएँ हैं, जिनमेंसे एक पूरी ओर दूसरी अघूरी है । पूरी रचना लाटीसंहिता है ओर उसमें उसका कर्ताका नाम बहुत स्पष्टरूपसे “ कविराजमल् ? दिया है । इसलिये पंचाध्यायीको भी ' कविराजमछ्ठ ” की कृति समझना चाहिये, ओर यह बात बिलकुल ही सुनिश्चित जान पड़ती है । लाटीसंहिताको कविराजमहन बि० सं० *६४१ में आश्विन शुक्कु दइशभी रविवारके दिन बनाकर, समाप्त किया है । जेसा फे उसकी प्रशस्तिके निम्नपद्मोंसे प्रकट हैः--- श्रीनृपतिविक्रमादित्यराज्ये परिणते सति । सषैकचत्वारिशद्धिरब्दानां शातषोडश ॥ २ ॥ तत्राप्यश्चिनीमासे सितपक्ष शुभान्विते । दृशम्यां दाशरथे: (श्च) शोभन रविवासरे ॥ ३॥ २ एक सन्धि नमूनेके तोर पर इस प्रकार हैः-इते श्रीस्पाद्गादानवद्यपथ बियाविशारदविद्रन्मणिराजम्हविरचिनायां श्रावकाचारापरनाम लाटीसंहितायां साधुदूदात्मजफामनमनःसरोजारविंद्विकाशनेकमार्तण्डमण्डलायमानाया॑ कथामस्त अुर्णन्‌ं नाम प्रथमः सर्गः । ॥




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