समग्र भाग 4 | Samagra Bhag 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
614
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सपमग्र/४/१४
है कि हम अन्तर्यात्रा प्रारम्भ कर दे और यह अन्तयत्र एक बार नहीं, दो बार नहीं,
बार-बार अभीक्ष्ण करने का प्रयास करें। यह अभीक्षण ज्ञानोपयोग केवल ज्ञान को
प्राप्त कराने वाला है आत्म-मल को धोने वाला है। जैसे प्रभात बेला की लालिमा
के साथ ही बहुत कुछ अधकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग
द्वारा आत्मा का अधकार भी विनष्ट हो जाता है और केवल ज्ञान रूपी सूर्य उदित
होत्ता है। अतः ज्ञानोपयोग सतत् चलना चाहिये।
'उपयोग' का दूसरा अर्थ है चेतना। अर्थात् अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग अपनी खोज
चेत्तना की उपलब्धि का अमोघ साधन है। इसके दवारा जीव अपनी असली सम्पत्ति
को बढ़ाता है, उसे प्राप्त करता है उसके प्रास पहुँचता है। अभीक्ष्ण ज्ञानोपयाग का
अर्थ केवन पुस्तकीय ज्ञान मात्र नहीं है। शब्दों की पूजा करने से ज्ञान की प्राप्ति
नहीं होती सरस्वती की पूजा का मतलब तो अपनी पूजा से है, स्वात्मा की उपासना
से है। शाब्दिक ज्ञान वास्तविक ज्ञान नहीं है इससे सुख की उपलब्धि नहीं हो सकती।
शाब्दिक ज्ञान तो केवल शीशी के लेबिल की तरह है यदि कोई लेबिल मात्र घोट
कर पी जाय तो क्या उससे स्वास्थ्य-लाभ हो जायेगा? क्या रोग मिट जायेगा नहीं,
कभी नहीं। अक्षर ज्ञानधारी बहुभाषाविद् पण्डित नहीं है। वास्तविक पण्डित तो वह
है जो अपनी आत्मा का अवलोकन करता है। '” स्वात्मान पश्यति य-सः पण्डित 1
पढ़-पढ़ के पण्डित बन जाये किन्तु निज वस्तु की खबर न हो तो क्या वह पण्डित
है अक्षरो के ज्ञानी पण्डित अक्षर का अर्थ भी नहीं समझ पाते। 'क्षर' अर्थात् नाश
होने वाला ओर 'अ' के मायने नरह अर्थात् मै अविनाशी हू, अजर-अमर हू, यह
अर्थ है अक्षर का, किन्तु आज का पित केवल शब्दों को पकड़ कर भटक जाता
है।
शब्द तो केवल माध्यम है अपनी आत्मा को जानने के लिए, अन्दर जाने के
लिए। किन्तु हमारी दशा उस पडित की तरह है जो तैरना न जानकर अपने जीवन
से भी हाथ धो बैठता था। एक पंडित काशी से पढ़कर आये। देखा, नदी किनारे
मल्लाह भगवान की स्तुति में संलग्न है। बोले- “ए मल्लाह! ले चलेगा नाव मे,
नदी के पार।'” मल्लाह ने उसे नाव मे बिठा लिया। अब चलते-चलते पडित जी
रौब झाड़ने लगे अपने अक्षर ज्ञान का। मल्लाह से बोले- “कुछ पढ़ा-लिखा भी
है? अक्षर लिखना जानता है?” मल्लाह तो पढ़ा लिखा था ही नहीं सो कहने लगा
पडितजी मुझे अक्षर ज्ञान नहीं है। पडित बोले तब तो बिना पढ़े तुम्हारा आधा जीवन
ही व्यर्थ हो गया। अभी नदी में थोड़े और चले थे कि अचानक पूर आ गयी, पडित
जी धबराने लगे। नाविक बोला पंडितजी मैं अक्षर लिखना नहीं जानता किन्तु तैरना
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