सिद्ध हेम शब्दानुशासन का अध्ययन | A Critical Study Of Siddha Hema Sabdanusa Asana (1963)ac 3953

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ 8३१ शब्दानुशासनजातमस्ति, सस्माशच कथमिदं प्रशस्यतमभमिति ९ छ्यते तद्धि अतिविस्तीण प्रकीणेश् । कासन्त्रं तहिं साधु मविष्यतीति चेन्न तस्य सङ्कीणत्वात्‌ । इदं तु सिद्धहेमचन्द्राभिधानं नातिविस्वीण न च सङ्कीर्णमिति अनेनैव शब्द्‌-व्युत्पत्तिभवति । अतपच स्पष्ट है कि सिद्धू देमशब्दानुशासन सम्तुलित और पश्चाजप्ण है । इसमें अस्येक सूश्र के पदच्छेद, विभक्ति, समास, अथं, उदाहरण और घिरि ये छुट्टों अंग पाये जते है । उपजीन्य- यो तो आचाय ইল ने अपने पूर्ववर्तोीं सभी ब्याकरणों से कुछ न कुछ ग्रहण किया है; पर विशेषरूप से इसके व्याकरण के उपजीवष्य काशिका, पातख़ऊछ महासाष्य और शाकटायन ब्याकरंण हैं। इन्होंने उक्त ग्रन्थों के विस्तृत विषयों को थोड़े ही शब्दों में बढ़ी निधुणता के साथ अपने सूर्तरों एवं कृत्तियों में समाधिष्ट किया है, जिससे उसे समझने में विशेष जायास नहीं करना पक्ता! हम यरं केवरं शाकटायन के प्रभाव का ही विश्केषण कर यह दिखलाने का प्रयास करगे कि हेमके अ्रहण में भी मौछिकता और नवीनता है। नदी के जल को सुन्दर कंचम के कछश में भरने के समान सूत्र और उदाहरणों को ग्रहण कर लेने पर भी उनके निषध क्रमक बेशिष्टय ने एक नया ही अमर्कार उत्पन्न किया है । सूत्र शाकटायन सूत्रा सिद्धदेम० सुत्राङक अप्रयोगीत्‌ 11 ११७ १।१।३७ आक्षन्नः १।१।७ ७।१६१२० सम्बन्धिनां सम्बन्धे ৭131৫ ७1४३१ २९ बहुगण भेदे १1१३१ ० १1918 ० कं समासेऽध्यधंः १।१।११ १।१।४१ क्रियार्थो धातुः १।१।९२ 81३1४ गस्यर्थधदोच्छ: १1१३४ ० ३।१।८ तिरौऽन्वधौ १।१।१३१ ३।१।९ स्वभ्योऽधिः १।१।३४ .३।१११३ भरध्वं बन्धे १।१।६८ ३।१।१६ . परः १।१।४४ ४।४।११८ ----------------- ------------- --------------- ------*+~--.-- १. सूत्रपाट, धानुपाट, गणपाठ, उणादि ओर्‌ लिङ्गानुशासन ये पच व्याकरणकेर्जय ই। হল নালা से समन्वित -साकरण पद्राङ्ग कहलाता है ।




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