व्याख्यान दिवाकर: | Vyakhyan Diwakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ক গর % {[ ७ 1 को माना है कि यह जीव सलार লী হাতীর को छोड़ कर अन्त मैं यहां ले चल देता है। यह यहाँ से चलता हुआ अपने कुछ कर्मी को साथ में ले जाता है। आज हमारे भाइयों को साइंस और उन्नति के भूर्तों ने ऐसा जकड़ कर बाँधा है कि थे धर्म का नाम छुनते ही घबरा जाते हैं किन्तु एक दिन ऐसा भी आधेगा, कि जिस रोज यह साइंस और उन्नति दूर से खड़ी खड़ी तमाशा देखेंगी। जब इस मुसाफिर की तेयारी का विस्तर वेध जावेगा उस दिनि साइंस, की तरक्की, संस्क्तत और फारसी, रपया/और पेसा, लड़के, बच्चे, भाई, चाप ये तनक भी सहायता न दे सकेंगे और यह प्राणी निराश होकर गला फाड़ फाड़ कर रोता चिल्लाता जन्मभूमि त्याग देगा । यह समय वड़ा दारण समय है, इसका नाम छेते ही शरीर के रोमांच खड़े हो जाते हैं। इतना दारुण होने पर भी यह पक दिन हमारे आगे अवेगा । इसका आरंम ही वड़ा भर्यकर है। जिस टाइम में यह अवसर आगा उस समय हम धर के चौक के मैदान में होंगे ओर आख पास हमारे पुत्रादि आंखुओं की धारा वहाते नजर आवंगे इस कटोर समय में चड़ चड़ नारितक आस्तिक वन अपने चित्त से कद्‌ उठते हँ कि- रे चित्त चिन्तय चिरं चरणौ सुरारेः पारं गमिष्यसि थतो भवसागरस्य।




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