अनित्य - भावना | Anitya - Bhawana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
51
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ प्रकीणक-पुस्तकमाला
भावाथथ--अपने प्र्वोपाजित दुर्निवार कर्मकारणके वशसे--अलंष्य
शक्ते-भावितव्यताके श्राघीन दाकर--यदि श्रपना कोद इष्ट स्वजन मर जाता
है तो उसपर जो मनुष्य ति शोक करता है उसका वह शोक करना
उन्मत्तो-जञेसी लीलाके समान है ग्रौर इसलिये वेसा करने वालेकौ उन्मत्त-
पागल समभना चाहिये; क्योकि शोक करनेसे कोई सिद्धि नहीं होती ।
हां, इतनां फल जरूर दता है कि उस शोकाकुल मूढ मनुष्यके धमः
श्रथ, काम और मक्त ये चग दी पुरुपाथं नाशको प्राम दाजात है
शोकावस्था में न धर्म बनता है, न श्र्थोपाजन होता है, न इद्धियाकेः
विप्रय सधते हैं और न मोक्षकी ही साधना बन सकती है । चारो ही
पुरुपा्थोको वह मट् मानव खो बेटता है |
उदेति पाताय रवियथा तथा
शरीरमेतन्ननु स्देहिनाम् ।
स्वकालमासाद्य निजे हि संस्थिते
करोति कः शाकमतः प्रवुद्धधीः ॥७॥।
होकर उदित सूयमंडल ज्यों पा स्व-काल छिप जावे,
देहवारियों का तनु त्यों यह उपजे ओ नश जावे।
इससे पाकर जो स्वकाल निज इ स्व जन मर जावे,
उसपर शोक कर का भविजन १ जा सुबुद्ध कहलावे ।५५॥। #
भावाथ जिस प्रकार सूर्यं प्रातःकाल उदयको प्रासन ता है
और अपना समय पूरा करके अस्त होजाता है-छिप जाता है-उसी प्रकार
# यह मूलका भावानुवाद हे, शब्दानुवाद प्रायः यह होसकता हैः--
८ पतन-हेन रवि ज्या उगे+ व्या नर देह बखान |
काल पाय हितु-नशत को कर दे शोक सुजान?
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