समाज - रचना, सर्वोदय दृष्टि से | Samaj Rachna Sarvodaya Darsti Se

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Samaj Rachna Sarvodaya Darsti Se by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय विषय-प्रवेशु सर्वोब्य व्यक्ति ओर समाज के राजनैतिक, आशिक, सामाजिक, सास्कृतिक ओर धार्मिक सब प्रकार के पहलुओं में सवां गए विकास का नाम है | “डा० रावाकृष्णुन्त भविष्य की ओर दृष्टि - टम वतमान काल में रह रहे हैं, आज की स्थिति, सुख दुख, हर्ष ओर शोक हमारे सामने हं, पिर भी कभी-कभी हम पीछे की बात याद कर लिया करते हैं। कल हम केसे थे, गत मास में हम जीवन के क्या-क्या अनुभव हुए, श्रथवा इससे पहले मत्त वर्ष या कई वपुः पहले हम केसी हालत भे थे, उस समय हमे केसे-केंसे काट भोगने पडे थे, या हमे कौनसी विशेष सुविधाएँ प्राप्त थी। भूत- काल के अतिरिक्त भविष्य की ओर भी हमारी निगाट लगी रहती हं | अनेक दशाओ मे तो भविष्य हमारा व्यान भूत और वर्तमान से भी अधिक आकर्षित कर लेता है | प्राय श्रादमी आज के दिन कई प्रकार के त्याग करने और कष्ट सहने के लिए इस वास्ते तेयार हो जाते ह कि उनका अगासी कल अच्छा हो। यही नहीं, बहुत से आदमी तीर्ज- यात्रा, दान-पुरुय, व्रत उपवास आदि का कष्ट इस विचार से सहाय करते हैँ कि उनका अगला অন্ন सुखमय दौ, उन्हे स्वग-पाम्ति टो, उनका परलोक सुबर जाय | जो आदमी एनर्जन्म या परलोक आदि भे विश्वास नही करते, वे इसी जन्म के आने बाले समय का विचार किया करते हैं | मनुष्य की आशवादित--बद्यपि कुछ आदमी ऐसे भी होते हैं । लिनके मन पर वर्तमान कठिनाइयों और कछ्टी का बहुत अधिक प्रभाव




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