प्राकृतिक जीवन की ओर | Prakartik Jivan Ki Or

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Prakartik Jivan Ki Or by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राकृतिक स्नान গু और वह दिन दर नही ह जव वे विस्मृतिकं गतंमे सर्वथा विीन हो जायगे । मनुष्यको प्रकृतिसे अपना संबंध-विच्छेद किए हजारों वषं हो गए । अब धीरे-ही-घीरे वह्‌ प्रकृति ओर उसके नियमो- के सबधमे अपना कतव्य समभ सकता है । प्राकृतिक चिकित्सा-प्रणालीके निर्माणमे हाथ बटानेवाले सभी सज्जन हमारी अधिक-से-अधिक प्रशंसाके पात्र हं। वे स्वागीण सत्य प्राकृतिक नियमोके निकूट प्री तरहसे नहीं पहुच सके एवं उनकी पद्धति सदोष है। इसके लिए न तो हमे उनकी निदा करनी चाहिए, न उन्हे दोषी टहूराना चाहिए । दुनियाके सभ्य समाजमे हए अबतकके सभी आदोलनोमें प्राकृतिक चिकित्सासवधी आदोलन सबसे अधिके गभीर और शक्तिशाली है। उसका सवध मनुष्यकी सबसे बडी निधि--स्वास्थ्यसे है। स्वास्थ्यपर ही उसके जीवनके सारे आनद एवं खुशिया निर्भर हे, और स्वास्थ्य ही उसे प्रत्येक प्रकारके दु ख, कष्ट और त्राससे बचा सकता है। अत. इस विषयपर अपने विचार प्रकट करते समय हमे न किसीके सबंध- में चुप रहने और न किसीके दोषोपर परदा डालनेकी जरूरत हं । हमे चाहिए कि इस महान कार्यमें छगे हुए छोगोपर अपनी सतर्क दृष्टि रखे ओर प्रत्येक वस्तु, हितो भौर व्यक्तियो- को उसके सामने गौण समभे । ¢ इस दृष्टिसे में अपने पहलेकी प्राकृतिक चिकित्सा-पद्धति और पुराने चालके शाकाहारकी गलतियां प्रकाशमें लानेसे




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