सचित्र आयुर्वेद | Schitra Ayurved
श्रेणी : आयुर्वेद / Ayurveda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40.91 MB
कुल पष्ठ :
283
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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माननीय मुख्य मन्त्र
बम्बई-राज्य
हम लोगों ने श्रायुर्वेद की गौरब्ाली परम्परा को अति प्राचीनकाल से पेतुक उत्तराधिकार सूत्र से प्राप्त किया है
झौर यह हमारा पुनीत कर्तव्य है कि भ्रायुवेंद के ज्ञान के विस्तार तथा श्रायुर्वेद के विकाश श्र समृद्धि के लिये हम
यधोपयुक्त पथानसरण करें ।. रोग-व्याघियों श्रौर के ऋषिश्रचेंन तथा उनके सभी उपलब्ध बेज्ञानिक ज्ञानों
के समन्वय की श्रावश्यकता होगी ।. मुझे हर्ष है कि 'सचित्र श्रायुबंद' ऐसे ज्ञान पर प्रकाश डालने का भ्रवसर देता है
भ्रौर मेरा है कि रोगियों श्रौर पीड़ितों की सेवा में आ्रायुर्वेद को संलग्न करने कं लिये यह दत्तचित्त होगा। में
शाप के राजयक्ष्मा-विशेषांक की सफलता-कामना करता हूं ।
मोरारजी देशाई
मुख्यमन्त्री, उड़ीसा-राज्य
भुवनेश्वर
महोदय,
'सचित्र श्रायवेद' के 'राजयक्ष्मा अंक' नामक के प्रकाशन के सम्बन्ध में मुख्य मन्त्री को श्राप की सुचना
मिली है । मुख्य मन्त्री ने इस विशेषांक की सफलता की कामना की है ।
प्रापका विस्वस्त
डी० के० काचरू,
मुख्य मंत्री के सहायक सचिव ।
दाभसन्देश
'सचित्र झ्ायवेंद' का “राजयक्ष्मा विशेषांक' भारत के उन झ्रार्तजनों की रक्षा करने में समर्थ सिद्ध होगा, जिन्हों ने
भ्रनवरत डाक्टरों के से शरीर को जीवन-हीन बना लिया है झौर जिस बहुभ्रथंसाध्य एलोपैधी ने उनके परिजनों
तक को यक्ष्मा का शिकार बना दिया है ।
जहाँ शुद्ध भ्रन्न श्र घृत का श्रभाव हो, जिस देश में प्रत्येक को १ श्रौॉंस दूध भी नहीं नसीब नहीं होता हो, वहाँ के लोग
कबतक बी० सी ० जी० से रोग-क्षमता प्राप्त कर यक्ष्मा से मुकाबला लेते रहेंगे ? परिश्रमशील भूखे निर्धनों की प्रवाहहीन
शिराों को बी० सी० जी० भ्ौर '“स्ट्रेट्टोमायसीन' कबतक जीवन देते रहेंगे ? श्राज इस समस्या का समाधान
झावस्यक है। हर
ग्राशा है प्राप का विशेषांक भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय को यह बता देगा कि श्राज पानी तरह करोड़ों का व्यय करके
भी एलोपैथी यक्ष्मा पर विजय प्राप्त नहीं कर सकी, वहाँ आयुर्वेद के स्वास्थ्योपदेश श्रौर झाहार-विह्वार ही पर्याप्त हैं ।
श्री बैद्यनाथ श्रायुर्वेद भवन लि० का यह सत्प्रयास आ्रायुर्वेद के ही नहीं, विदव के कल्याण में सहायक सिद्ध हो, यही
मेरी शुभकामना है।.
कविराज माधवप्रसाद दास्त्री ।
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