औ भैरवी | O Bhervi

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O Bhervi by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ओो भैखी ! | १३ कभी चमत्कार प्रदर्शन न करने के कारण उन्हें तंत्र साधता के आइम्वर में भोग-विल्लास करने वाला कहकर उन की निदा करते थे भरन्तु एसे मौ भक्त थे भो जीमूत को হাতীহিক निग्रह कौ पराकाष्ठा पर पहुँचा हुआ मानते थे और कहते थे कि जीमूत ऊध्वेरेतस थे । वे इच्छा से रेतस का स्खलन कर उसे पुन; ग्रहण कर लेने की क्षमता रखते थे | ऐसी भी किवदन्ति थी कि जीमूत भंरवी पिद्ध कर चुके थे । तारा की प्रस्तर मूर्ति उन के संकेत पर नृत्य कर उन की साधमा क्रियाओ को सम्पन्न करती थी। महाविहार में जीमूत की झमता का भमादर और बातंक देवाधिदेव महादेव के समान ही था। उन के शुद्ध होने पर सर्ववाध की आशंका मानी जाती थी । एक दिन पहले पहर के अन्त में ही माहुल को समाचार मिला कि सिद्ध तांधिक जीमूत ने उमर अपने प्रकोष्ठ में स्मरण किया हैँ | माहुल का हुदय कांप उठा । उसे विश्वास था कि सिद्ध ালিক मे योग-बल द्वारा उस के छिप- छिप कर नारी मूत्ति बनाने के अपराध को जान लिया हैँ 1 माहुल रक्षा के लिये परिक्राण दिवासेना का पाठ करता हुआ, सिर भुकाये सिद्ध जीमूत के আঘল ক द्वार पर पहुँचा । सिद्ध जीमूत के अंतेवासी शिष्य ने माहुल को आंगन के भीतर लेकर द्वार मूंद लिया । प्िद्ध जीमूत के आँग्रन में प्रोव रखते ही माहुल का मस्तिष्क अग्रिय गधों से चकरा गया। तीले बच्चे मद ओर से मांस की गर्व भा रही थी । अम्तेबासी ने आंगन के भीतर बने कक्ष के द्वार को हाथ से धपधपाया और पुकारा--~- मैरवौ, कलाकार घा गपा हे 1 मत्तेदासौ क्षिप्य मुदे द्वारं खुलने से पूरव ही माहृल से बोता-- विद्ध स्वयं आदे देंगे ।” और दह शांगत के दारके रूपमे वनी कोढरी क मौर लोट गया । कक्ष के मुदे पट सुले । बश्रिय तीसी गनधों का एक और मोका माहुल के मुख पर लगा परन्तु उस को चेतना इन गनन्‍्धों को अनुभव ते कर सको ! उस के सम्भूत बपरलुले द्वार के पट पर दाथ रखे मोटे, मैले वस्व पे शरीरको ठंडे एक नवयुवती खड़ी थी। माहुल मे नारोके सम्मुख भशर के विनय मौर शीतके अनुसार नेत्र झुका लिये । यदि সিহান্না हायरमे होता ठो वह पात्र सम्मुख कर नेत्र झूकाये




User Reviews

  • rakesh jain

    at 2020-12-05 12:12:32
    Rated : 8 out of 10 stars.
    THE CATEGORY OF THIS BOOK IS "STORIES"
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