प्रभु दर्शन | Prabhu Darshan
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
244
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भारत में भी कुछ ऐसी ही घटना घटो | कुछ लोगों ने समझा,
चटवारे से मिलाप हो सकता है और भी कुछ लोग हैं, जो सर्ब-
लाश से नवसृष्टि फी संभावना करते ह । ये भूल कर कि थे कल
तक एक दूसरे के साथी थे, उन्होंने कंधे से कंधा मिल्रा कर एक
समि शत्रु फो पराजित करिया था, वे नई गुट्टवंदियों के साथ
कृत्रिम प्रलय फी तैयारियां कर रहे है ।
राह्द गुलत हो, प्रयत्न अवश्य हुआ | परिणाम--'मर्ज बढ़ता
गया, ज्यों-ज्यों दवा की |” संसार के कष्ट कम नहीं हुए। बढ़े |
भुखमरी, अन्न-संकट, बाद और भूकंप तो दैवी प्रकोप हैं; मानव
फे अपने मन में असंतोष, ईर्पा और वेमनस्य की इतनो, आग
घध ही कि सारा संसार इसकी लपेट में आगया ! शारीरिक और
आत्मिक, दोनों तरद के कष्ट बढ़ गये ।
इसका कारण ?
निश्चित रूप में यह कि संसार के प्रयत्न गृलत दिशा में हैं।
इन प्रयत्नों में कोई मोलिक भ्रुटि है। अन्यथा इन भगीरथ
प्रयत्नों के बाद, जिनके लिए मानव को इतना अधिक मोल
चुकाना पड़ा, संसार में शांति हो जानी चाहिए थी। मैंने इस
बात पर विचार क्रिया। विचार करते हुए मेंने अनुभव किया
कि सदी माग खोजने के लिए, जिस हप की आवश्यकता है, मुझ
में उसकी कमी है । तच मेने सन्यास लेने का निश्चय किया।
पिछले बरस के आखिरी महीने की पहली तारीख को दर्शोनाचार्य
श्री स्वामी आत्मानंद जो महाराज के आश्रम यमुनानगर,
जगाधरी में पटच कर मने धन, यश॒ ओर परिवार की इच्छा
को त्याग कर संन्यास की दीक्षा ले ली और आत्म-दर्शन तथा
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