भागते किनारे | Bhagte Kinare

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhagte Kinare by उदय राज सिंह - uday raj singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about उदय राज सिंह - uday raj singh

Add Infomation Aboutuday raj singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भागते , किनारे राजनारायण अबतक शेव? कर चुका था 1 हाथ-मु है “धोने को जब बंद उठा दो अपने वारजे से देखा कि एक तोम खड़ा है और उस पर दो लड़कियों बेटी हैं । वह अनायास ही -अजीत से पूछ बेठा--'क्यों, उस तोंगे पर तुम आए हो १? त ¦ घरसे कठं लोगआएु हैक्या! यदीं दद्य सूममे শিস হী | | । । “লহ ********প্তন্ वही रहने হাতেই তরী অন धजा*****? अजीत ने क्षरा मपते हुए कहा । ॥ भाई, यह तुम्हारा ही घर है--उन्हें क्यों. नहीं“? शायद वे बुरा मान जायेँ।* ** 1? कोई ग्र थोड़े ही हैं--घर की ही तो हैं--1? अजीत चुप हो गया। राजनारायणश एक क्षण उसे “निहारता रहा । वह तो उड़ती चिढ़िया पकड़ ले। चट बोल ' उठा--बुम नहीं. बुलाते तो में ही उन्हें““**'आखिर भे . उम्दारी दै कोन £ | ५ 0 ` ^ ^ “` 'राजनारायण्‌ अजीत की कानी सु्ुराता खनता रहा । उसकी उम्र भी अपने सहपाठी अजीत की ही छोगी। मगर झिन्दगी के अनेकों अनुभव दो चके हैं उसे। १३




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now