भूदानी सोनिया | Bhudani Soniya

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Bhudani Soniya by उदय राज सिंह - uday raj singhजय प्रकाश - Jay Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“बैठक अगले माह बम्बई में होने जा रही है, देखें हमें क्या हुक्म होता है । जी उठ-उठ कर बेठ जाता है नवीन !” उफ” ग्रो० साहब अपने श्रन्दर किंसी उमड़न को, किसी तैश को दबाने की “चेष्ठा करने लगे । “जी साहब, सच मानिए, मेरा तो आज-कल सोना हराम है । रगों मैं बराबर खून दौड़ता रहता है । रब यदि कुछ न होगा तो मेरी नसें फूल कर फट जायेंगी । इतना “टेन्शन” है प्रो० साहब !” “गाँधीजी कभी-कभी जाने कया कर बेंठते हैं, कुछ समभ में नहीं छाता । चौरी-चौरा का काराड' तो आपको याद ही होगा । मैं तो उस समय गोद का “बच्चा था । कहाँ आज़ादी के दीवाने जवानों के जोश की तेज रफ्तार, कहाँ लगा दी एकाएक ब्रेक । उधर टेन्शन और इधर पसती । सारा देश तिलमिला “कर रह गया । फिर नमक-संत्याग्रह के समय बेसौके ब्रेक लगा दी; और आज जब देश पागले हो रहा है, भँग्रेजों को घताने का सबसे अच्छा मौका था गया है तो श्रभी भी श्राप ब्रेक से पैर हटाते ही नहीं । हाँ, इंजन गर्म हो रहा है--गमे; अब देखिए, ज्वालामुखी फूटेगी--श्गर श्ैंग्रेज खशी-खुशी हमारी माँगें पूरी न करेंगे तो अपना हक़ हम लड़ के होंगे, से के रहेंगे।” “पागल न बनी नवीन, गाँधीजी देश के थरमामीटर हैं। उनका भी ९पारा चढ़ रहा है। उनके झन्तर की आवाज़ सारे देश की पुकार बनकर देश +ी नहीं, सारी दुनिया में समीन-थासमान के बीच गूँजना ही चाहती है। भाई, धीरज 'घरो, कान की चाल और कमांड पर प्रश्न नहीं उठाते और श्




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