हिंदी संत साहित्य पर बौद्धधर्म का प्रभाव | Hindi Sant Sahitya Par Baudhdharm Ka Prabhav
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
373
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ. विद्यावती ‘मालविका’ सागर नगर की एक ऐसी साहित्यकार हैं जिनका साहित्य-सृजन अनेक विधाओं, यथा- कहानी, एकांकी, नाटक एवं विविध विषयों पर शोध प्रबंध से ले कर कविता और गीत तक विस्तृत है। लेखन के साथ ही चित्रकारी के द्वारा भी उन्होंने अपनी मनोभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। सन् 1928 की 13 मार्च को उज्जैन में जन्मीं डॉ. विद्यावती ‘मालविका’ ने अपने जीवन के लगभग 6 दशक बुन्देलखण्ड में व्यतीत किए हैं, जिसमें 30 वर्ष से अधिक समय से वे मकरोनिया, सागर में निवासरत हैं। डॉ. ‘मालविका’ को अपने पिता संत ठाकुर श्यामचरण सिंह एवं माता श्रीमती अमोला देवी से साहित्यिक संस्कार मिले। पिता संत श्यामचरण सिंह एक उत्कृष्ट साहित
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ दौदधमं ब मध्ययुगोन रान्त-साहित्य पर प्रभाव
मो पूजा उसी पूर्व यक्ष-यूजा थरो स्मृति छिए विद्यमात है*1 वैदिया बाल में यक्ष-प्रम्न वो
'बुद्योय”* कहा जाता था। वैदिया साहित्य में “ब्रह्म शब्द हो यश या सूचक
धा} उसो का अपया वरम 3 । भेन सौर बोद्ध साहित्य में इ1 यश्षन्यक्षणियों वा विस्तृत
वर्णन मिखता है । वैसाणी मे चैत्यो पौ पूजा दहत प्रचित धो। वहाँ सत्त चत पे*।
मुसीनारा, राजगृह जादि सयानो भे भी चैत्य पे, जिनरी पूजा परम्पगसेरोती षघलौभा रहौ
थी ओर उन्हें शवितशाठी पक्षों से अधिगृही। मात्रा जाता था ।
तथन्मप्र वा भी ्रचतनधा, बितर तत्रन्मत्न तथा यरक्ष-यूजा दो লূত नरी मार
जाता था । ऐसी अनेर जौवियाएँ थी जिन्हे हीव समझा जाता था। जैसे अग-बिया, अग्नि-
हवन, दर्बी-हृदन, तुप-्टोम, तप्डुल-होग, तैउ-होम, धृत-होम, मुस से घृत लेवर वुल्ले से
होम भादि^।
भ्गोतिपमकछोगो बा विध्वासभा, न्तु दृछरोगरेसेये, जो ज्योिय वो अन्प-
विश्वास भी माते े\।
दस षार गे लित्पिया वौ अदस्य अच्छी यो । उयोग-धयपे गुना रुपसते चलते े !
समाज यौ जानिते स्थिति भी अच्छी घी। वस्व-उद्योग पर्षाप्ठ उराति पर घा। परुदीरुखख्थो
में छगे লে सोग भी सुर एव प्रसन्त थ। व्ययशायित सैद्ध उयदा पर बणिए-प्या भौर पण्मायों
ते कितारे अवस्थित थे। वाराणसी, सापेत थावस्तो, मपुरा, वौधाम्बी, बैशाऱो, राजगृह,
चणा सक्षमिणा प्राप्यपुब्ण पुक्तीोनारा आदि ऐसे ही नगर गे আনন নি তবলা না
सस््वतप्रता थो। रापाज गे आम स्थिति वे सदुसार भो एत मादण्टधा चिसमे আহুজাং
धश्रिग-मलख द्ाग्मणनटाशाठ, घेहि, मठास्रे्ठि एगुणेपि तौर उत्तरप्रेष्ठि पक्के से परनवाएु
छोग विभूगित थे । খালা হনব ददा सम्मा स्तेये नौर यने पातत मे इनसे पराम
दिया वरत थ० ।
श्लिज्षा बी व्यवस्था गुरछुठा में होती थी। जी आजार्य पो दाथा देवर अज्वा
सेवा एसे छात्र शिक्षा ग्रतण वरते ये । सिर्धय और प्री मभी प्रधर मे छात्र रमात रपरसे
एप साथ पिता ग्रहण ररते थे। उस समय याराणरो, त क्षिका, रागगृरे भादि प्रधान
सिषेध पे। जल जस्त-पस्व, লাহাঁহ यादि मे ताप सभो पदार कौ धिता यो व्यवस्था
उत्तर प्रदेश में बौड़धर्म पर उि़ास, पृष्ठ १६।
यजुर्वेद ३२, ९ तथा ४५ ।
उततर परदेश मर बौदधमं वा विकास, पृ १९1
महापरिनियवान सुत्त, दोषतियाय, खी राहुल साइत्यायन द्वारा बआपूदित, पुष्ठ १३४३
५ बह्मजाल सुत्त, दोधनिकाय, पृष्ठ ४ |
६ जातक ४९ | हिन्दी साहित्य सम्मेलन दारा प्रवाशित, पृष्ठ ३३६ १
नक््सत्त पतिमानेन्त अत्यो बालू उपच्चग्गा।
अत्यो অংঘজ বহাল দি वरिस्सन्ति ताखा ॥
७. बुद्धिस्ट इण्डिया, पृष्ठ ५७।
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