विमल भक्ति संग्रह | Vimal Bhakti Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
527
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विमल भक्ति संग्रह १३
महाव्रत है ।
पाप क्रियाओं से निवृत्त होने के लिये महान् पुरुषों ने इनका आचरण
किया अथवा ये स्वतः ही महान् द्रत हैं इसलिए ये महाव्रत कहलाते हैं ।
पाँच समिति-शिष्य ने आचार्य देव से प्रश्न किया-प्रभो ! सम्पूर्ण लोक
जीवों से भरा है यहाँ-
कधं चरे. कधं चिट्ठटे कधं मासे, कधं सष्ट |
कधं भुंजीज्ज भासेज्ज जदौ पावं ভা অর্ক ||
जदं चरे जदं चिं जद मासे जदंसये |
जदं भुजीज्ज भासेज्ज एवं पावं ण बंधर्ह ||
कैसे चले, कैसे बैठे. कैसे सोर, वैठे, खां ? जिससे पाप बन्ध न हो ।
यत्नाचारपूर्वक सब करो । वसुनन्दी आचार्य ने टीका में स्पष्टीकरण किया कि-
एवं यत्नेन तिष्ठता यत्नेनासीनेन शयनेन यत्नेन भरंजानेन यत्नेन भाषमाणेन
नवं कर्म न बध्यते चिरन्तनं च क्षीयते ततः सर्वथा यत्नाचारेण भवितव्यमिति ।
यत्नपूर्वक खड होओ, यत्नपूर्वक बैठो, यत्नपूर्वकं खाओ, यत्नपूर्वक
बोलो जिससे नवीन कर्म का बन्धन न हो ओर चिरकाल से धे कर्मक्षयको
प्राप्त हो इसलिये सर्वथा हे साधो । यत्नाचार से प्रवृत्ति करना चाहिये ।
महात्रत निवृत्ति रूप ह तथा समिति प्रवृत्ति स्प हैं-
“सम्यक प्रवृत्ति को समिति कहते ह ।
ईर्या, भाषा, एकणा, निक्षेपादान तथा मलमूत्रादि का प्रतिष्ठापन सम्यक्
परित्याग ये पाच समिति जिनेन्द्रदेव ने कही हैं ।
ईर्या समिति-धार्मिक प्रयोजन के निमित्त चार हाथ आगे जमीन देखकर
दिवस में प्रासुक मार्ग से जीवों का परिहार करते हुए गमन करना साधु की
ईर्यासमिति हँ ।
भाषा-चुगली, हंसी. कसरत. पर निन्दा, अपनी प्रशंसा ओर विकथा
आदि को त्याग कर स्व-पर हितार्थ मित बोलना भाषा समिति हं ।
एकणा-छयालिस दोवो से रहित शुद्ध, कारण से सहित, मन-वचन-काय
व कृत-कारित-अनुमोदना (3 » 3 नक्कोटि) विशुद्ध ओर शीत-उष्ण आदि में
समन भाव से भोजन करना निर्दोष एवणा समिति है ।
आदाननिश्चेपण-ज्ञान के उपकतरण शास्त्रादि, संयम का उपकरण पिच्छी,
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