सत्य - जीवन | Satya - Jivan

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Satya - Jivan by लक्षमन प्रसाद - Lakshman Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५१ सत्य जीवन ( £ यात्री ने भी मुख सोड़ा और अपने सम्बन्धी के मकान पर आवाज लगायी। सम्बन्धी बाहर निकला) दोनों नमस्ते एक इूसरे को कह कर घर के भीतर चले गये । सम्बन्धी: भाई. कहां से आ रहे हो ? यात्री:--जहाँ रहता हूँ वहीं से भ्रा रहा हूँ । भम्बन्धी:-- कहो, कंसे झरना हुआ ? यात्री. पंदल ही भ्रा रहा हूँ। मार्ग में अद्भुत मूखेता का देखता आया हूँ । हर एक मनृष्य अपने विचारों में मस्त हैं 1 कोई किसी की वात सुनना ही नहीं चाहता, चाहे वह वात कितनी ही सत्य तथा न्यायसंगत हर । | सम्बन्धी: तुम्हारा पागलपन अभी चल ही रहा है । यात्री. और चलता ही रहेगा जब तक क्रि में सत्य की खोज न करल्‌ । सम्बन्धी: श्रच्छा, थक गये होगे, अव तनिक आराम करा। कल सत्य नारायण की कथा है। पूर्णमासी का दिन है। उसके . लिये म सामान लेकर अ्रभी आता हूँ । ( सत्य नारायण कौ कथाः एक पुस्तक है जिस में सत्य भाषण और सत्याचरण का महत्व वर्णन किया गया वास्तविक सत्य नारायण की कथा का वर्णन न हीं है। ) यात्री पलंग पर लेट गया और सोचने लगा, प्रहा 1 `वा है। उसमें अच्छा अवसर मिला, सत्य नारायण की कथा | श्रवतो सचमुच पत्य का साक्षत्‌कार हो जायगा। इतना सोच ही रहा था कि सम्त्न्धी सामान लेकर वापिस झा गया। भो निवृत्त होकर फिर वार्तालाप आरम्भ हुआ । यात्री: भाई कथा कौन कहेगा ? सम्तन्धी: -- एक बड़े पन्डित आये हुये हैं । मैंने एक संकल्प किया जन इत्यादि से




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