जनम कैद | Janam Kaid
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जनम कंद २४५
| गला भर श्रातादहै ] तो सत्याकी यह हालत. कैसे बरदाश्त
होती उसे ?
सतीक्ष--वाबूजी, आप फ़िक्र क्यों करते हैं, हम लोग तो मौजूद हैं। उनकी
देख-रेखकी आप कोई चिन्ता न करें, आपकी तबीयत तो ठीक
ইল?
पिता--अब क्या ठीक होगी सतीश ! [ हँसकर धीरेसे | यह घाव तो
शायद अब ज़िन्दगीके साथ ही जायेगा। बुढ़ापेमें यह भी देखना
नसीब था । भाग्यने उम्रपर जो मुहर लगा दी है वह तो मिट नहीं
सकती । यह देखो---[ लिफ़ाफ़ा उठाता है | यह खाकी लिफ़ाफ़े
आज दो सालसे लगातार चले आ रहे हैं। हर बार लगता है
जैसे महेनद्रकी ख़बर अब छलाये ''अब लाये खेकिन [ ठहरकर |
सबमें एक ही मज़मून होता है । दो सालसे कोई फर्क नहीं ˆ इन
ल्िफाफोमे सत्याको जिन्दगी
सतीक्ष- बात पलटकर | अरे हाँ, वह तो में कहना भूल ही गया था
वावूजी ˆ चीनके कौसल जनरखका खत आया है'”'उन्होंने निजी
तौरपर हमे मदद देनेका वायदा किया हैमं काफी दिनोंसे वहाँ
से पत्र-व्यवहार कर रहा था । |
पिता--- ज्ञरा स्वस्थ होकर | क्या लिखा है उन्होंने''मुझे तुमने पहिले
नहीं बताया | कहाँ हैं वह खत
सतीद्--अभी दिखाता हूँ [ पोर्टफोलियोसे हूं ढ़कर खत निकालता है
श्र खोलकर वृद्धके हाथोंमें देता है | लिखा है कि हम पूरी
तरह चीनमें भी ढंढ़नेकी कोशिश करेंगे'''शांघाईके पास फ़ौजियों
का एक कंसन्ट्रेशन कैम्प था। वहाँ शायद पता लग जाय | मेंने
उत्तर दे दिया है ।
पिता--] पुनः उदास होकर | दे दो सतीश। लेकिन जैवाब में जानता
हं । [ ससि भरकर | जवाबमें जो कुछ होगा वह मुझे अभीसे
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