दोपहर को अँधेरा | Dophar Ko Andhera

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Dophar Ko Andhera by यमुनादत्त वैष्णव - Yamunadatt Vaishnav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१८ ; ; दोपहर को अंधेरा &% एक दिन इसी प्रकार की ब्रिज की चतुरग मे बैठा वह पुलिस के दारोंगा पर उनके साथी द्वारा चिडी के गुलाम को ठीक समय पर न चलाने के कारण पडी फटकार को सुनकर मन-ही-मन खीभ रहा था, तमी. चपरासी ने सूचना दी कि तहसीलदार साहब से मिलने महाशयजी आये है | 'महाशयजी ? बुलाओ, बुलाओ !? पूरी चौकडी ने एक साथ प्रसन्न होकर कहा, अइए, महाशय सुखलालजी ।! दारोगा ने सक्तेत मे बतला दिया कि सुखलाल-जैसा भला और काम का व्यक्ति सारी तहसील में कोई दूसरा नहीं है। कोई भी काम उसके लिए असम्मव या कठिन नहीं है। सरकारी अफसरो के ऐसे परमभक्त इस जमाने मे ब्रिरले ही है । धोती-कुरता धारण किये गाँधी टोपी पहिने उस व्यक्ति ने कमरे मे आकर सबको प्रणाम किया। इकहरे शरीर का वह व्याक्त बडा स्वस्थ और प्रसन्न दीखता था | उसकी लम्बी-लम्बी खिचड़ी मूछे दोनो होठों को आच्छादित किये थीं । उसको बातचीत का ढंग मधुर और व्यवहार सभ्य था । स्कूल के देड्मास्टर ने उससे पूछा--ताल मे चिड़ियाँ गिरने लगी हैं अब महाशयजी १ हम भी चलते शिकार को | फिर बिना उत्तर क़ी प्रतीक्षा किये रामप्रसाद से कहा--छुखलालजी का गॉव यहाँ से बारह सील दूर है। दशनल।लजी के तो ये महाशयजी परम- मित्र थे | अरेठी गॉव मे मछलियों और चिड़ियो का शिकार भी खूब होता है। दशनलालजी के साथ हम लोग कई बार गये है उस ओर । छरागन्तुक ने श्रपनी छुड़ी किनारे रख दी और बेच पर बैठते हुए. कहा-- दशनलालजी के क्या कहने १ उनकी तो बात ही निराली थी; बड़े ही सज्जनं थे, हमारी ओर के गाँव के बच्चे-बच्चे उन्हे याद करते है । रामप्रसाद मन-ही-मन सोच रहा था, अरेठी ! यह नाम तो परिच्रित-सा लगता है; इससे पहिले, मैंने इसे कहाँ सुना था ! अरे हॉ, परसों वे अजियाँ आई है, नहर के पानी की जाँच के विषय में | एस० डी० ओ० ने आज्ञा दी है कि तहसीलदार घटनास्थल पर जाकर जॉच करे। अरेठी वही तो गॉव है । इस नाम के याद आते ही रामप्रसाद कहने को उद्यत हुआ कि उस गवै




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