मध्यकालीन हिंदी गद्य | Madhya Kalin Hindi Gadhya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घुराने काव्यों में गद्य १९
में चार प्रकार की प्राक्त भाषाओ का उल्लेख किया है। ये हैं--महाराष्ट्री,
सागधी, शोरसेनी, ओर पेशाची । बुलूनर ने इन प्राकृतों का सबसे सुविधाजनक
विभाग किया है। पाली को छोड़ कर उनके निम्नलिखित रूप हैं:---'
महाराष्ट्री
शौरसेनी | नाटकीय आकृत
मागधी 1
अद्ध॑मागधी
जैन महाराष्ट्र | जेन प्राकृत
जेन शौरसेनी
महाराष्ट्री सर्वोत्कृष्ट प्राकूत समझी जाती थी। व्याकरण द्वारा सर्वप्रथम
उसी का नियमन हुआ। नाटकों में जो श्यां शौरसेनी में बोलती है बे
महाराष्ट्री में गाती हैं यह कवि-कल्पित नहीं वरन्
महाराष्ट्री गोदावरी के आस-पास के प्रदेशो मेँ बोरी जाने वाली
भाषा के प्राचीन रूप पर आधारित सत्य है। इसमे
आधुनिक मराठी की कितनी ही विशेषताएँ पाईं जाति हैं ।
शूरसेन मे बोली जाने के कारण यह शोरसेनी आकृत कहलाई। साधारण-
तथा यह संस्कृत नाठको में प्रयुक्त होने वाली भाषा है, जिसे स्त्रियाँ ओर विदूषक
बोलते हैं। कषर मंजरी मे तो राजा भी इसी श्राकृत
शौरसेनी में बोरूता हे । शुद्ध संस्कृत के प्रदेश में उत्पन्न होने से यह
उसके अत्यधिक समीप है अतः इसे हिन्दी और संस्कृत
के बीच की शंखर कह सकते हैं ।
मागधी पूर्व की प्राकृत को कहते हैं। नाटकों में वह निम्न जातियों द्वारा
बोली जाती थी । इसके विषय में ए. बी, कीथ का मत है: दूसरी ओर
सागधी निम्नवर्ग वार्लों की ही भाषा थी। यद्यपि इसमें भी
मागधी. कुछ कहानियों का निर्माण हुआ, फिर भी तुलनात्मक दृष्टि
से यह पूर्णतया महत्वहीन थी ।'
१, इन्ट्रोडक्शन ठु प्राकृ१! एल्फ्रेड सी, वुल्नर, पृष्ठ ४ |
२. “98201 07 (78 01167 प्रात ৮29 7८४८०ए८वं 107 17096 01 10 ए
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