मध्य हिंदी - व्याकरण | Madhya Hindi - Vyakaran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Madhya Hindi - Vyakaran  by कामताप्रसाद गुरु - Kamtaprasad Guru

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. कामताप्रसाद गुरु - Pt. Kamtaprasad Guru

Add Infomation About. Pt. Kamtaprasad Guru

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
“स्थान से उत्पन्न होनेवाले खरों को सवण कहते हैं । जिन स्वरों के स्थान एक से नहीं होते, वे श्सवर्ख ' कहलाते हैं । अ, री परस्पर सबर्ण हैं। इसी प्रकार इ,. 'ई तथा उ, ऊ सवर्ण हैं। अर, इ वा अर, ऊ अथवा इ, ऊ. ५ असवशे स्वर हैं । [ सूचना --ए, ऐ, झ्रो, शो, इन संयुक्त स्वरों में परस्पर सवर्णता * नहीं है; क्योंकि ये श्रसवर् स्वरों से उत्पन्न हैं।] रे०--उच्चारण के अनुसार खरों के दो भेद श्र हैं-- / (१) साबुनासिक ( २ ) निरनुनासिक | यदि मुँह से पूरा पूरा श्वास निकाला जाय तो शुद्ध--- “निरचुनासिक--'्वनि निकलती है; पर यदि श्वास का कुछ भी “अंश नाक से निकाला जाय, तो श्रचुनासिक ध्वनि निकलती है। अबुनासिक स्वर का चिह्न ( ) चंद्रबिंदु कहलाता है; . च जेसे--गाँव, ऊँचा । अनघुस्वार श्रौर अनुनासिक व्यंजनों के समान चंद्रबिंदु कोई स्वतंत्र वर्ण नहीं है; वह केवल अनु- “नासिक स्वर का चिह्न है । ३१--हिंदी में ऐ श्रौर औ का उच्चारण संस्कृत से सिन्न ' होता है। तत्सम शब्दों में उनका उच्चारण संस्कृत के ही अनुसार होता है; पर हिंदी में ऐ त्म्यू श्रौार झो अबू के समान बोला जाता है; जैसे-- अल संस्कृत--मैनाक, सदैव, ऐश्वंयं, पौत्र, कलुक । ः हिंदी--है, कै, मेल, सुने, शरीर, साधा | ः




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now