पिछड़ी अर्थव्यवस्था का विकास नियोजन | Pichhadi Arthvyavstha Ka Vikas Niyojan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
365
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय ।
संकल्पनात्मक विश्लेषण
प्रस्तुत अध्ययन का शोध विषय पिछड़ी अर्थव्यवस्था का विकास- नियोजन [सोनभद्र जनपद
का विशेष अध्ययन] न केवल राष्ट्रीय अपितु अन्तर्राष्ट्रीय चिंता का विषय बन गया है । उपर्युक्त
शोध विषय मानव समाज के लिए एक समस्या बन गयी है जिसके समाधान हेतु अनेक स्तरों पर
अनुसंधान, प्रयोग, सर्वक्षण, अन्वेषण तथा नयी-नयी योजनार्ओ का निर्माण एवं क्रियान्वयन किया जा
रहा है । यह समस्या न केवल वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, राजनीतिज्ञों व प्रशासकों के
लिए वरन् भूगोलविदों के लिए भी चिंता का विषय बन गया है । पिछड़ी अर्थ व्यवस्था व ग्रामीण
अर्थव्यवस्था एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं किन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी और बेरोजगारी की
समस्याओं को खंडों में हल नहीं किया जा सकता । इसे तो समग्र रूप में ही सुलझाना होगा । इस
शताब्दी के प्रारम्भ तक कृषि उत्पादन और उसे मिलते-जुलते क्षेत्रों , जैसे पशुपालन, डेयरी, वन,
मत्स्य-पालन के विकास और मानवीय सुविधाओं जैसे पीने का पानी, सडक, स्कूल, अस्पताल, गाँवों
को विद्यत आदि की सुविधा उपलब्ध कराने को ही विकास माना जाता था । आधुनिक समय में
विकास के मानदण्ड मे वृद्धि होने के बावजूद उपर्यक्त आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराने का कार्य
बरकरार है । वास्तव भ विकास की अवधारणा दिग्भ्रमित हो गयी है । स्मिथ” ने विकास की
समस्या को विश्व की सबसे महत्वपूर्ण समस्या माना है । विकास के तीन स्तर अविकसित ,
विकासशील व विकसित काफी प्रचलित हैं किन्तु इसमें कोई स्पष्ट भेद नहीं है । इस प्रादेशिक
असमानता को दूर करने के लिए संतुलित नियोजन का निर्माण एवं उसके क्रियान्वयन की
आवश्यकता है । विभिन्न क्षेत्रों के विकास हेतु उसकी भौगोलिक पृष्ठभूमि के अनुरूप विभिन्न
विकास-योजनाओं की आवश्यकता होती है । प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य ध्येय पिछड़े क्षेत्रों की
पहचान कर उसके लिए नियोजन की एक नीतिगत व्याख्या प्रस्तुत करना है ।
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