गोरखनाथ और उनका युग | Gorakhnath Aur Unka Yug

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Gorakhnath Aur Unka Yug by रांगेय राघव - Rangeya Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मूमिका जग मंदिर पट्टी से 'बौरंगीमाथ को आरसंकनी प्राप्त हुई जिसके मिए उम्टें मैं देता हूँ । इतके पठिरिक्त भ्रतेक पुस्तकालयों बिदार्गों तथा कुछ कनफटे बोगियों ने थो मुझे दी है मेरे काम में इचिदुबक हाय बंटाया है उसे मैं कया कहूँ । छिज-इसक से प्रतिध्वनित को पाख्िमि की मांति सूर्जों में बाद इतनी सामप्ये मसला मुररम कहाँ । प्रो टंडन को भम्यवाद देकर मैं उनके बुस्त्व को घटाना सही 'चाहुठा । पुस्तक में सम्मान सूचक 'जी' झम्दों का धमाष मिलेगा यह पसम्माग की प्रयृत्ति नहीं । मुझे शाप के लेज में के स्वात पर कासिदास प्रथिक सम्मानित धमता है । गोएसनाव थो शीष के बिपय में कहू मए हैं बहू उनके ऊपर लिखते वाले के लिए उपयुक्त है । तदेब मैं उनके थे शब्द यहाँ उद्धृत करके भ्रपती का चस्सेक %र देता उचित समझता हूँ । राति मई भ्षि राति गई आलक एक पुकारे है कोई नगर में सुरा दाशक का दुप । दिसटि पढ़ते सारी कौमति कीमत सबद रुचार साथ कचे प्रयोचर बाणी ताका बार तपारे॥ -गोरलबाती पृष्ठ 80 “रपिय राधव




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