हिंदी रचना | Hindi Rachana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৪ हिन्दी-रचना ओर संसार से अपना नाता जोड़ता है। इसीलिए वह हमारी धात्री है । मातृ-भाषा के जीवन के विषय में कुछ बातें जानना जितना मनोहर है, उतना आवश्यक भी है । इससे हिन्दी-भाषा का अच्छी भापा लिखने ओर भाषा की उत्तमता विकास समभने की रुचि ओर योग्यता दोनों ही उत्पन्न होंगो । हिन्दी भाषा के विकास का इतिहास बड़ा ही विचित्र है । इसकी जन्मदात्री भाषा का निर्णय विद्वानों के विवाद का एक विपय है। इसका जन्म किस भाषा से हुआ' इस सम्बन्ध में विद्वानों के अनेक मत हैं । कुछ विद्वानों की सम्मति है कि हिन्दी संस्कृत भापा से उत्पन्न हुई और कुछ का कहना है कि प्राकृत से । संस्कृत भाषा के नांम से तो सभी परिचित हैं, किन्तु प्राकृत के नाम से बहुन से विद्यार्थी अन- भिज्ञ होंगे । अधिकांश विद्वानों का यह मत है कि संस्कृत ओर प्राक्ृत दो बहिनें है, जो एक माता से उत्पन्न हुई हैं। ऐति- हासिक दृष्टि से उनका कहना है कि जब आय भारतव५ में आये थे, उनकी भाषा बेदिक थी । इतने विस्तृत देश मे फैले हए आर्यो की उसी वैदिक भाषा में आगे चल कर अनेक भेद होने लगे ओर भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रयोगों से उसका सममना भी कठिन होने लगा । तब उसी वैदिक भाषा के ऐसे नियम बनाये गये जिससे भाषा में आगे परिवर्तन न हो सके । उन नियमों से शुद्ध की हुई और बाँधी हुई भाषा का नाम संस्कृत पड़ा । किन्तु बोल्ल-चाल् मे वही वैदिक-भाषा प्रयोग में आती रही, जिसे प्राकृत कहने लगे । आज भी हमारी प्राकृ. नगरों-की-भाषा और गाँवों-की-भाषा में, हमारी . घर-की-भाषा और बाहर-की-भाषा में बड़ा भेद है ।




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