हरिवंशराय बच्चन | Harivanshray Bachchan

Harivanshray Bachchan by चन्द्रगुप्त विद्यालंकार - Chandragupt Vidyalankar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about चन्द्रगुप्त विद्यालंकार - Chandragupt Vidyalankar

Add Infomation AboutChandragupt Vidyalankar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
परिचय १५ बुरी तरह थका हुआ था, और मुझे नींद आ रही थी। फिर भी मैने कहा-- “जरूर |! और बच्चन जी ने बगाल के अकाल पर लिखी अपनी ताजी रचना की पाण्ड लिपि मँगवा ली । कविता-पाठ आरम्भ हुआ। सच मानिए, कुछ ही देर मे मेरी नीद न जाने कहाँ गायब हो गई | आधी कविता समाप्त होते न होते सिर दर्द, थकावट, नींद सभी दूर हो गए। एक अनिवंचनीय ताजगी और स्फूर्ति मैने अनुभव की, और जब बच्चन जी ने--- या चण्डी सवभूतेष क्षुधारूपेण सस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्यं नमस्तस्ये नमोनम । का पाठ किया तो ज॑ से भूख की शक्ति का एक जीवित चित्र मेरे सम्मुख खिच गया। ८४ पृष्ठो की इस कविता का पाठ न जाने कितनी देर में समाप्तहुआ। मुझे जैसे समय का ज्ञान ही भूल गया था। यह अत्यन्त शक्तिशाली रचना सुनकर मुझे वह अनुभूति हुई जो एक अत्यप्त श्रेष्ठचित्र देखकर होती है। यह जानकर मुझे विस्मय हुआ कि एक हजार पक्तियों की यह कविता बच्चन जी ने केवल वत्ती घटो में लिखी है। एक सुबह वह कविता लिखने बैठे तो न नाश्ते के लिए उठे और न भोजन के लिए ही। रात के बारह बजे तक बिनो कुछ खाए-पिए वह लिखते चले गए | उसके बाद थककर कुछ घटो के लिए लेटे, पर नींद नही आई । पुन बैठकर लिखने लगे । दूसरी साँक तक यह कविता उन्होने सपूर्ण कर ली थी । बच्चन जी ने जीवन के कितने ही उतार-चढाव देखे है। कितनी ही भारी असुविधाओ, अभावों और मानसिक क्लेशो का उन्हें अनुभव है। पर अपनी मेहनत और अपनी प्रतिभा के बल पर आज वह भारत सरकार के एक उच्च पदाधिकारी हु और उनका जीवन सुविधापूर्ण, पर बँधी हुई, नियमित परि- स्थितियों मे चल रहा है। नई दिल्‍ली में प्रधानमत्री-निवास से लगभग दो सौ गज की दूरी पर उनका स्वच्छ और खुला बँगला है, जिसे तेजी जी ने और बच्चन जी ने बाहर-भीतर सभी ओर से अत्यन्त सुरुचिपृवंक सजा रखा है। वेश-भूषा से अब बच्चन कवि प्रतीत न होकर अफसर ही प्रतीत होते हे । हिन्दी में कवियों की वेश-भूषपा और




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now