अशोक | Ashok

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Ashok by चन्द्रगुप्त विद्यालंकार - Chandragupt Vidyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दण दस्य १३ विदेशी सेनिक--भशोक तक्षशिला पहुंच गया है। नेता--सचमुच चि० संनिक--जी हां । एक श्रावाज्ञ--चसो उस पर हमला करें 1 दूरी षाव --श्रशोक के रिदिर को श्राग लगा दो ! तीसरी झावाश--पशोक का नाश हों ! सब लोग--अशोक का साश हो ! चौथो धावात्--चलो, प्रभी चलो ! पांचवीं भावार--भशोककीसेनाकाडेराक्िसिश्रोरटै? छठी प्रावा --उत्तर दिशामे। सातवां घावाज़--नहीं, दक्षिण में 1 झाठवीं झावाश--नहीं, पश्चिम में । भौं श्रावाश--चलो, किसी भोर तो चलो । स लोग --चलो, चलो { [वही विदेशी सैनिक कूदकर एक ऊचे स्थान पर चद *. जाता है भौर चिल्लाकर कहता है--] विण पेनिक--ठहरो । [ब लोगं ्चौकव र उसकी श्रोर देखने लगते रै । ] वि० सनक -सक्षशिला के नागरिकों, दुममे से दिसी ने प्रशोक वों देखा है ? [एक क्षण चक लोग विस्मय से उस हो शोर देखते रहते हैं उसके वाइ-- | एक झावाजश--यहे वौन है ? सरो एप्वाड--जःपूष है ! लीपरी घ्रादाज्--नहीं, यात्री है । चोद श्रावः नदी, सनिकदै।




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