उपादान और निमित्त्की शास्त्रीय चर्चा | Upadan Aur Nimittki Shastriya Charcha

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Upadan Aur Nimittki Shastriya Charcha by माणिकचंद कौन्देय-Manikchand Kaundey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तभी तो गोम्भटप्तार कर्म काण्डमें केवछ नियाति या स्वभाव अथवा आत्माका कोरा कथन करना आदि मन्तन्य ३६१ मिथ्यामतोमिं गिनाये हैं | ^ जन्तु जदा जेण जहा जस्स य णियमेंण होदि तत्तु तदा । तेण तहा तस्स इवे इदि वादो णियदिवादो दु ॥ ” ( गोम्मटसार ) जो, जिष समय, जिससे, जे, जिसके नियमसे होता ই वष्ठ, उप्त सपय, उप्ते, तैसे उवे ष्टी होता है। यह नियति नामका ।मध्यत्व € | ^ को फरई कटयाणं तिक्खत्तं पियविहंगमादीणं, । विविहत्तं त॒ सदहाओ इदि सब्व॑पि य रदाओत्ति ॥” ( गोम्मटसार ) कार्टामें तीए्पपना कोन करता है १ पृण, पक्षी भारिक न्याहे न्‍्यारे स्वमाबोंकों कोन बनाता है ! इस्त प्रश्नका उत्तर यही है कि सब स्वमावसे काय बन जाते हैँ । ये सब स्व॒माववाद मिथ्यादशन हे । इप्ती प्रकार मात्र आत्माके गीत गाना भी गास. वाद नामका मिध्यादर्शन है। | (जो नैता होनहार है, चैते कारण मिक जयगे, छीर कार्य तदनुप्ार्‌ बन बैठेगा, ऐसे कथनमें कोई प्लार नहीं दे (जो होन-




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