भगवद्गीता सटीक | Bhagwadgeeta Satik

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : भगवद्गीता सटीक  - Bhagwadgeeta Satik

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मुंशी नवलकिशोर - Munshi Nawalkishor

Add Infomation AboutMunshi Nawalkishor

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पहिला अध्याय । , ३ धर्म किया था, इस कारण वह धमेक्षेत्र शुष्द करफे परसिद्ध है, ओर धर्मक्षेत्र कहने से राजा धृतरा के मन का यह अभिप्राय था कि उस परमस्मि कुरुक्षेत्र में जाने से पापियों की भी वद्धि धर्मपरायण होजाती है, यदि दर्योधन की बुद्धि धर्मपरायण होगई हो तो वया आश्चय है, ओर यदि उसका अन्तःकरण ऐसा शद्ध होगया हो तो बह यद्ध से निहते होकर कल्याण- पवक अचल रहेगा, अथवा युधिष्ठिर तो पृषे से ही धर्मासमा हे, धमममि मे जामे से उसका चत्त अधिक धर्म की ओर होगया होगा, तव वह हिसारूषी युद्ध- कर्म को कदापि नहीं करेगा, ओर वन को लोट जा- वेंगा, और अगर ऐसा हुआ तेब भी मेरे पुत्रों का ही राज्य बना रहेगा, अथवा हमारे पुत्रों की अधिक ओर बसी सेनाको देखकर ओर भीप्म कणीदि महावली सेनापतियों को देखकर, युविष्टरादिकों के हृदय में भय उत्पन्न हुआ होगा, तब भी हमारे ही पुत्रों का राज्य अटल बनारहेगा, धृतराष्टर के इस कुंटेल आभि- प्राय को अपने हृदय में जानकर उसके गन्धबनगरवत्‌ मनोशज्य के नशार्थ संजय कहता भया के ॥ १ ॥ मृलम्र । संजय उवाच- ष्टा तु पाण्डवानीकं व्यूढं रयोधनस्तद्‌ ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now