जातक भाग ३ | Jhatak Part Iii
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
570
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १५ ]
३१८. कणवेर जातक २२६
[श्यामा ने नगर-कोतवारू को हजार दे डाकू की जान
बचाई और उस पर आसक्त होने के कारण उसे अपना स्वामी
वनाया । डाकू उसके गहने-कपडे ऊ चक्तता यना 1]
३१९. तित्तिर जातक २३१
[चिडिमार फेंसाऊ-त्तीतर की मदद से तीतरो को फेंसाता
था। तीतर को सनन््देह हुआ कि वह पाप का भागी है वा
नही ? ]
३२०. सुच्चज जातक २३३
[रानी ने राजा से पूछा--यदि वह पर्वत सोने का हो
जाय, तो मुझे क्या मिलेगा ? राजा ने उत्तर दिया---तु कौन
है, कुछ नही दूंगा।]
३* कुटिदुसक वर्ग २३८
३२१. कुटिदुसक जातक २३८
[बन्दर ने वये के सदुपदेश से चिढकर उसका घोसछा नोच
জাভা |]
दे१२ दहम जातक २४२
[ खरगोन को सनन््देह हो गया कि पृथ्वी उछूट रही है। सभी
अन्व-विद्वासियो ने उसके अनुकरण में भागना आरम्भ
किया ।]
बे२३. ब्रह्मदत्त जातक २४५
[ब्राह्मण ने वार्ह वर्धं के सकोच के वाद राजा से एक
छात्रा गौर एक जोडा जूता भर मागा । |
> २४. चम्मच्चाटक जातक २४९
[मेढा ब्राह्मण पर चोट करने के लिए पीछे की ओर हटा।
बाह्यण ने समझा मेरे प्रति गौरव प्रदर्शित कर रहा है।]
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