जातक भाग ३ | Jhatak Part Iii

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Jhatak Part Iii by मदन्त आनंद कौसल्यायन - Madant Aanand Kausalyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १५ ] ३१८. कणवेर जातक २२६ [श्यामा ने नगर-कोतवारू को हजार दे डाकू की जान बचाई और उस पर आसक्त होने के कारण उसे अपना स्वामी वनाया । डाकू उसके गहने-कपडे ऊ चक्तता यना 1] ३१९. तित्तिर जातक २३१ [चिडिमार फेंसाऊ-त्तीतर की मदद से तीतरो को फेंसाता था। तीतर को सनन्‍्देह हुआ कि वह पाप का भागी है वा नही ? ] ३२०. सुच्चज जातक २३३ [रानी ने राजा से पूछा--यदि वह पर्वत सोने का हो जाय, तो मुझे क्या मिलेगा ? राजा ने उत्तर दिया---तु कौन है, कुछ नही दूंगा।] ३* कुटिदुसक वर्ग २३८ ३२१. कुटिदुसक जातक २३८ [बन्दर ने वये के सदुपदेश से चिढकर उसका घोसछा नोच জাভা |] दे१२ दहम जातक २४२ [ खरगोन को सनन्‍्देह हो गया कि पृथ्वी उछूट रही है। सभी अन्व-विद्वासियो ने उसके अनुकरण में भागना आरम्भ किया ।] बे२३. ब्रह्मदत्त जातक २४५ [ब्राह्मण ने वार्ह वर्धं के सकोच के वाद राजा से एक छात्रा गौर एक जोडा जूता भर मागा । | > २४. चम्मच्चाटक जातक २४९ [मेढा ब्राह्मण पर चोट करने के लिए पीछे की ओर हटा। बाह्यण ने समझा मेरे प्रति गौरव प्रदर्शित कर रहा है।]




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