दिवाकर दिव्य ज्योति | Diwakar Divya Jyoti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
283
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सियोगति की बातना्ं ] { ६.
১ तल न सके
हैं। उसके पेर बाँध देते हैं और फिर उसके शरीर पर लकड़ियों से
बिर्देयता पूरक प्रहार करते है। मासते-मारते जब पांडे की चमड़ी
सुब सू जाती है, तब से मार डालते हैँ श्रौर उस चसड़े को
शरोर पर से उतार कर तत्काल ही नगाडे पर सद् देते है । तव कहा -
बह नगाड़ा वोनत्ता ই 1
इस प्रकार नगाड़ो के लिए भी पचेन्द्रिय जीवो की घात होती
है। इस कारण बहुत-से मन्दिरों मे तो नगाड़े बज्ञाना बद कर दिया
गया है |
एक आदमी ने नगाडे की जोडी बनवाई । उसके लिए किसने
पाडे मारे गये, यह सब हाल बनाने वांले ने मुझे बतलाया था ।'
चनवाने बाले का नास भी मुझे याद है, परन्तु उसे प्रकट करने '
की आवश्यकता नहीं। यह हमारे ससार के ही गाँव की बात ই।,
किन्तु जो बातत एक गाँव में है, वह अन्यत्र भो है ।
भादयो ! आए लोग कीडियो की दया पालने बाले है,किन्तु
आप नहीं जानते कि दिन-रात आपके फॉम में आने वाली चीजों
के लिए हजारों पचेन्द्रिय जौलवरों की हिसा हो रही है! यह चमड़े
की मुलायम चीजें केसे बनती हैं ! गर्भेवतों गाडर के पेट में जोर
से लातें मारी जाती हैं | लात के आघात से गाडर का गर्भ गिर
जाता है और गर्भ के चमडे से मुलायम मनीबेग ( बढुए ) आदि-
आदि चीज तैयार होती है ! कहिए, कितनी घोर हिंसा है ? इस
हिसा को दयावान् श्रावक कभी सहन कर सकता है ९
आप यह न सोच लें कि हम अपने हाथ से हिंसा नही करते
श्रतएव हमे उस हिसा का भागी नहो बननां पडता । रेषा सम-
मन] अपने को घोखा देना है 1 नो लोग ठेसी दिसामय वस्तुओं
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