दिवाकर दिव्य ज्योति | Diwakar Divya Jyoti

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Diwakar Divya Jyoti  by श्री जैन दिवाकर - shree jain divakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सियोगति की बातना्ं ] { ६. ১ तल न सके हैं। उसके पेर बाँध देते हैं और फिर उसके शरीर पर लकड़ियों से बिर्देयता पूरक प्रहार करते है। मासते-मारते जब पांडे की चमड़ी सुब सू जाती है, तब से मार डालते हैँ श्रौर उस चसड़े को शरोर पर से उतार कर तत्काल ही नगाडे पर सद्‌ देते है । तव कहा - बह नगाड़ा वोनत्ता ই 1 इस प्रकार नगाड़ो के लिए भी पचेन्द्रिय जीवो की घात होती है। इस कारण बहुत-से मन्दिरों मे तो नगाड़े बज्ञाना बद कर दिया गया है | एक आदमी ने नगाडे की जोडी बनवाई । उसके लिए किसने पाडे मारे गये, यह सब हाल बनाने वांले ने मुझे बतलाया था ।' चनवाने बाले का नास भी मुझे याद है, परन्तु उसे प्रकट करने ' की आवश्यकता नहीं। यह हमारे ससार के ही गाँव की बात ই।, किन्तु जो बातत एक गाँव में है, वह अन्यत्र भो है । भादयो ! आए लोग कीडियो की दया पालने बाले है,किन्तु आप नहीं जानते कि दिन-रात आपके फॉम में आने वाली चीजों के लिए हजारों पचेन्द्रिय जौलवरों की हिसा हो रही है! यह चमड़े की मुलायम चीजें केसे बनती हैं ! गर्भेवतों गाडर के पेट में जोर से लातें मारी जाती हैं | लात के आघात से गाडर का गर्भ गिर जाता है और गर्भ के चमडे से मुलायम मनीबेग ( बढुए ) आदि- आदि चीज तैयार होती है ! कहिए, कितनी घोर हिंसा है ? इस हिसा को दयावान्‌ श्रावक कभी सहन कर सकता है ९ आप यह न सोच लें कि हम अपने हाथ से हिंसा नही करते श्रतएव हमे उस हिसा का भागी नहो बननां पडता । रेषा सम- मन] अपने को घोखा देना है 1 नो लोग ठेसी दिसामय वस्तुओं




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