अथर्व वेद (द्रितीय खण्ड) | Atharv Ved (Dritiya Khand)
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
711
श्रेणी :
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No Information available about आचार्य गोपाल प्रसाद 'कौशिक' - Aacharya Gopal Prasad 'Kaushik'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का ११ प्रध्याय ३१ ] १३
तीले केश, सहुस्राक्ष, अध्वगामी, श्र वाहिनी का क्षण
मात्न मे विनाश करने वाले रुद्र के द्वारा हम कभी प्रह्मरित
नही ॥७॥।
छिन मव देव की महिमा स्पष्ट दवे दमे सब उपद्रवो
से दूर रखें । शग्नि लेपे जलको छोड़ता है उसी माति ख
देव हमको छोड़ दें, उन्हें हमारा नमन स्वींकाद हो। वे हमें
दुख न दें ॥॥ ८५॥।
शवं देव को पुनः पुनः नमन है, भवदेव को आठ बार
नमस्कार है ? हे पशुपते ! तुम्हे दस बार नमन करता हैँ।
विभिस्त जाति के पशु जीवो झ्ौर पुरुषों का रक्षण
करो ॥ ६ ॥
हष) तुम महान शक्तिशाली हो, तुम्हीं चारों
दिश्ञाओ के स्वाभी हो } यह् द्यावा पृष्व सौख श्रन्तरिक्ष तया
समस्त दिख्लाऐ तुम्हारा शरीर रूप ही हैं।तुम सब पए
अनुग्रह करने वाले स्तुत्य हो )॥ १० ॥
उरुः फोशो वसुधानस्तथायं यस्मिम्निमा विश्या भुधनान्यन्तः
स नो मृड पशुपते सस्ते परः फ्रोह्ठारों अधिन्ना; श्वानः
परो यन्त्वंघददों धिफेश्य/ ॥ १९ ॥
धर्नाविर्भाष हरित हिरण्ययं सहल्नध्चि शतवर्घ शिखण्डिन् ।
प्र स्येषुक्चरति देषहेतिस्तस्ये नमो यत्तमस्या दिशीतः ॥ १२॥
सो्तियातो निलयते स्वा द्र निचिकोषति ।
पठ्चावनुप्रयु क्षं तं विद्धस्ख पदनीरिलं ॥ १३ ॥
सवारद्रौ सयुजा स चिवनाव॒भावुग्रौ चरतो वीर्याय ।
ताभ्या नभो यतमस्या दिशीत. ॥ १४ ॥
नमस्तेऽस्त्वायते ममो खस्तु परायते ।
नमस्ते स्र तिष्ठत अशएमोनायोत पे नम ॥॥ १५ ॥
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