शोध प्रविधि | Shoudh Pravidhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शोघ क्या है ? / 7 नही उनकी तवसम्मत व्याध्या भी है। यूरोप मे अरस्तू ने निगमन तक प्रणाली से निर्णायव तथ्य प्रस्तुत करन का उपक्रम कया । इस पद्धति मे प्रवमाय सिद्धात वो प्रधान आधार मान लिया जाता है। अनुमानित वित्वास को विशिष्ट उदाहरण द्वारा पुप्ट कर निष्कप निकाएा जाता है । जसे-- प्रधान जाघारचावय देवपुस्प अप्रनिम होत हैं गौण आधार-वाबय राम देवपुम्प हैं । निणय अत राम अप्रतिम हैं । यूरोप मं तक वी इस पद्धति ने अनुसघान म वैतानिक प्रक्रिया को जम दिया है। भारतीय नयायरिक वी तक-पद्धति म अनुमान को स्पप्ट करन के लिए तीन नही पराच वाक्या का प्रयोग टता है । जेसे-- राम अप्रतिम हैं-- प्रतिना वयात व दवपुरुप हैं-- हेतु सी दकरुर्य অসজিয হস जैसे झष्ण बलराम, ভুত, ইজ राम भी देवपुम्प हैं उपनय अत व अप्रतिम हैं-- निगमन यूरोप भ बाद के ताबिका को अनुभव हुआ कि शोध की प्रयम्‌ निगमन प्रणाली निर्दोप नहीं हे । इसम पूव निर्धारित विश्वास या मान्यता को लेकर अग्रसर होना पडता है! सत वक्न जादि चिन्तको ने प्रत्यय निरीक्षणणय अनुभव को प्रमुखता प्रदान कर अनुमघेय तथ्य वी मोर अप्रसर होने वी विधि पुरस्सर की । इसम विशेष से सामाय तथ्य तक पहुचने कौ क्रिया निहित है 1 इसे 17000०01६९ ए1८४४०0 ० 1६98०78 (तक वी आगमन प्रणाली) कहा जाताहै। इस पदति को पूवे उदाहरण से इस प्रकार समयाया जा सक्ता है---राम अप्रतिम हैं क्योकि उतके इृत्य देवपुरुष के समान हैं। (पर वदान्ती ओर मीमासक प्रथम तीन अवयवों को ही पर्याप्त मानते हैं) । अत देवपुर्प अप्रतिम होते है! पर यह पदति भी सर्वथा निर्रान्ति मौर वनानिके नहं जान पडी । वेक्‍न परिकल्पना की स्थापना के ही विरुद्ध है जिसे ठोक नही समझा गया। क्यांकि शाघ वा कोई घ्यय-लद््य निर्धारित किए बिना शोधार्बी अधकार म ही भटफता বইলা है। हा इस वात का ध्यान अवश्य रहे कि यनवनप्रकारण परिकल्पना वो सिद्ध करने का दुराग्रह न हो । वेकन वी आगमन पद्धति को आल्यचता करते हुए छाराबी ने ल्खा है-- श्यदि कई या ही तथ्या को बटोरना मात्र चाहता ह। तो बात दूसरी है 1 चान का अन्वपी वस्तुआ को निर्देश्य देखकर शान्त नही रहे सक्ता उसे




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