अस्मिता के लिए | Asmita Ke Liye

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Asmita Ke Liye by विद्या निवास मिश्र - Vidya Niwas Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मेरा देश वापस लाओ / १४ वादी शक्तियों के यहां गिरवी रखने में संकोच नहीं कर रहे हैं और गफता के लिए हमारे पास पराये देश की भाषा की अधीनता ही एकमार्स संबरत है । भाषाओं की बात छोड़ दें और यह मानकर चलें कि कोई अंत राहमा का स्वर तो है नहीं हमारा देश माजकल अंतरात्मा की आवाज पर चलता हैं अंतरात्मा की बात करें तो भी लगता है कि इस अंतरात्मा के ऊपर कोई शिर्त सवार है । पढें उलटवासियों में बात करती है। कभी गांधी बनती है कभी लोहिंगा और अब कभी-कभी जयप्रकाश । पर हर हालत में बात करती है सिहासन की । झांपड़ी जाने कहां आंधी में उड़ गई बरगद उखड़ गया चखें में पोलिस्टर का धागा भन- भनाने लगा केवल रत्न-जटित सिंहासन की इन्द्रधनुषी छठा आंखों मे पेंग भारती रही सत्ता के सुख का झूला शूलता रहा । गांधी लोहिया और जयप्र काश कोरी आवाज रह गये अंतरात्मा इस भावना को गठागट पी गई । गांधीजी की धरोहरी का अर्थ मालिक हो गया लोहिया का समता-विद्यालय लोहिया के चेलों की कृपा से स्वप्न हो गया और संपूर्ण क्रांति मतदान केंद्रों पर कब्जे में प्रनिफलित होगर। अंतरात्मा ने ऐसी ही आवाज लगाई थी । भंतरात्मा बड़ी प्रवल धार है। वह एक क्षण में असत्‌ को सेल कर देनी है जो कल अशुचि था वही शुचि हो जाता है जो कल भन्याथी था बड़ी न्याय का संस्थापक बन जाता है जो कल तानाशाह था वही लोकतंत्र का मसीहा बन जाता है अंतरात्मा ऐसा कैवल्य है ऐसी गुणातीत अवस्था है कि वहां न पुण्य रह जाना है न पाप न मँत्री रह जाती है न शत्रुता न सम्मान रह जाता हैं से भसान | वह ब्राह्मी स्थिति है वहां भले-बुरे का हत रह ही नहीं जाता । उसकी आम पर जो करें वही मुक्त भाव से किया गया कर्म है और निर्ठा से प्रेश्नि कम तो बंधन है । इस अंतरात्मा ने निष्ठाओं के बंधन से छुटकारा दे दिया । र्याधीनता के लिए भी निष्ठा संदर्भह्दीन हो गई है। आदमी स्वाधीनता के दाधिस्व से भी मुक्त हैं पड़ोस में कुछ हो हुआ करे हमारे देश म॑ धीमी गति से क्रिबड को खेल खेलते रहेगा उसका आंखों देखा हाल मेड़ों पर वीराहों पर सुना जाना रहेगा दुबद गेंद पिटती रहेगी गेंद फेंकने वाले फंकते-फेक्ने ऊबते भीर खीझषतें रहेंगे और मेंद उड़ंगी नहीं तेज बल्लेबाज कसमसातें रहेंगे पर बलला रन से बनाने बालों के हाथ में रहेगा क्योंकि इस देश में रन बनाना नहीं विकेट पर डटे रहना सबसे बढ़ी साध है। सारी सिप्ठा बस इस एक साघ में कं द्रिन है संसद के गोल अक्कर में बाहर न होने पाएं इसके लिए जो भी कुर्बानी करनी पढ़ें मैत्री सिद्धांत महाँ तक कि देश कोई भी गुर्बानी छोटी है। अंतरात्मा को उपनिषदों से पुकार मिलती है आत्मार्थ पूथिवीं त्यजेतू भात्मा के लिए पृथ्वी को भी त्याग देना चाहिए । पर मुझे भंतरात्मा की नहीं दंश की दर कार है। मुझे ही नहीं जो भी इस देश




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