जय - पराजय | Jai Parajay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about उपेन्द्रनाथ अश्क - Upendranath Ashk
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अंक ९ ७ दृश्य २
~^ সি পর্ণ পিছ १ 2४८०६४२:४०४०४८४८. ४७४४६२६ २४०४०६/ ~~~. ^^ ^^.“
दूमरी आवाज (नेपथ्य मै) मामे छोड दो, मागै छोड दो !
শীত में कुमार आ्रगए', कुमार आगए! का शोर ।
सब उठकर खड़े हो जाते हैं। रगशाला का
सयोजक आगे बढ़ता है ।
रणमल, बाघसिंहद, पदाधिकारियों तथा अन्य सैनिकों
के साथ कुमार হাছন का प्रवेश ।
संयोजक--आइए, पधारिए ! इस स्थान को अपने चरणु-कमलो
से पवित्र कीजिए |
कुमार--मुझे; ठहरना नहीं, मुझे जाना है, नगर के दूसरे
हिस्सो का दौर करना है । मन्त्रि-सण्डल की बैठक मे शामिल
होना है । লও
एक अधिकारी--प्रात: से सन्ध्या तक चलते-चलते दोनो हाथो
से निधनो, दीन-दुखियो, विपन्न को दान देते-देते कुमार, आप
थक गए होगे, अब ठहरिए, सुस्ता लीजिए !
भारमली मंच पर आती है, रणमल उसकी ओर
टकटकी लगा कर देखता दै ।
दूसरा अधिकारी--हाँ, हाँ कुमार अब आप विश्राम कीजिए ।
कुमार--जीवन मे विधाम करा सामन्त जी, ठहरना, सुस्ताना
कहाँ ? निरन्तर, अथक चलते रहना ही तो जीवन है, ठहरना तो
मृत्यु है, उहरना तो...
भारमली की ओर कुछ क्षण देखते दै, फिर श्रेखिं नीची कर
नते हैं, सुख पर लाली दोड़ जाती रै 1
User Reviews
No Reviews | Add Yours...