जय - पराजय | Jai Parajay

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Jai Parajay by उपेन्द्रनाथ अश्क - Upendranath Ashk

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंक ९ ७ दृश्य २ ~^ সি পর্ণ পিছ १ 2४८०६४२:४०४०४८४८. ४७४४६२६ २४०४०६/ ~~~. ^^ ^^.“ दूमरी आवाज (नेपथ्य मै) मामे छोड दो, मागै छोड दो ! শীত में कुमार आ्रगए', कुमार आगए! का शोर । सब उठकर खड़े हो जाते हैं। रगशाला का सयोजक आगे बढ़ता है । रणमल, बाघसिंहद, पदाधिकारियों तथा अन्य सैनिकों के साथ कुमार হাছন का प्रवेश । संयोजक--आइए, पधारिए ! इस स्थान को अपने चरणु-कमलो से पवित्र कीजिए | कुमार--मुझे; ठहरना नहीं, मुझे जाना है, नगर के दूसरे हिस्सो का दौर करना है । मन्त्रि-सण्डल की बैठक मे शामिल होना है । লও एक अधिकारी--प्रात: से सन्ध्या तक चलते-चलते दोनो हाथो से निधनो, दीन-दुखियो, विपन्न को दान देते-देते कुमार, आप थक गए होगे, अब ठहरिए, सुस्ता लीजिए ! भारमली मंच पर आती है, रणमल उसकी ओर टकटकी लगा कर देखता दै । दूसरा अधिकारी--हाँ, हाँ कुमार अब आप विश्राम कीजिए । कुमार--जीवन मे विधाम करा सामन्त जी, ठहरना, सुस्ताना कहाँ ? निरन्तर, अथक चलते रहना ही तो जीवन है, ठहरना तो मृत्यु है, उहरना तो... भारमली की ओर कुछ क्षण देखते दै, फिर श्रेखिं नीची कर नते हैं, सुख पर लाली दोड़ जाती रै 1




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