निर्देशक | Nirdeshak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
384
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निर्देशक १६
भी उसकी आस्था है। सरला के साथ जो बूढ़ा नोकर आया था।
ভ वहाँ के जीवन से कोई स्नेह नहों हुआ्रा । नवीन उस बूढ़े के
उत्साह म॒ अपने को पाता है। लेकिन रुरला श्रागयों है, जिसके
मनोभावों को वह एक मलक में ही पहचान गया । जिस गति पर वह
सोच रहा था, उसके प्रवाह को बूढ़ा नौकर ब्यर्थ ह्वी रोक लेने की
भावना लिए हुआ था । सरला और तारा, दानों सहेलियाँ आज
वर्षों में मिल रही हैँ । लड़कियों के इस स्नेह के प्रति सदा वह सोचा
करता है | उनक्रा जीवन मोह और ममता की घनी डोरियों से
पग-पग पर उल्लका रहता है । नवीन तो आज तक न सोच सका था
कि वह किसी को अपना सगा दोस्त बना सकता है । कोई ऐसा
व्यक्ति अब भी याद नहीं आया। सरला उस परिवार में अपने को
परिचित बनाने में ऐसी निषुण होगी, इसका अनुमान नवीन को
'नहीं था |
दिन को कोई खास घटना नहीं हुईं । संध्या को नवीन बढ़ी दूर
'घूमने निकल गया | धोरे-घोरे रात पड़ गई । वह खेतों-खेतों में टहलता
रहा | श्रास पास बैलों की घंटिया बज उठती थीं। वह पत्थर के बने
छोटे चबतरे पर बैठ गया । वह चबूतरा सर्वेवालों ने बनाया था। उस
पर खुदा हुआ था आर० के० आर० १६२५ | वहाँ रेलवे लाइन बनाने
के लिए पैमाइश हुई थी । निकट भविष्य में सम्मबतः कभी वह रेलवे
लाइन चने | श्रमो तो उसकी तसवीर पर धूल सी पढ़ गईं थी। गाँव
का सामाजिक-इतिहास उद। उसके लिए कई कुतूहल-पूर्णा घटनाओं का
खजाना रहा है | पुराने घरानों का उजड़ जाना, नए परिवार का जन्म
लोगों की श्रापत्ती लागडांट-नारियों का आपसी स्नेह सूप। श्रव चारों
श्रोर धना अन्धकार छा गया । जुगनू बीच-नीच में चमक रहे धे । नीचे
दुर सी नदी कौ धाटी निपट काली पड़ गई थी । उस घुनसान में उसे
श्रानन्द् श्राया । बह उस समयचब से श्रलग श्रा +केला था | श्राज
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