प्रगतिशील साहित्य की समस्याएँ | Pragatisheel Sahitya Ki Samasyayen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
223
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ४ ]
निवा स्वयं व्यक्तिगत या सामाजिक रूप से इन घटनाओं या भावनाओं से
अपने को निर्लिप्त और निस्संग [हीं रख सकतः ; अतः जो उसे महत्वपूर्ण
लगता है वही स्थायी श्रौर सुन्दर भी लग सकता है ।”
अगर महान लेखक निःसंग और निर्लिप्त नहीं होता, वह वर्ग संघर्ष से
तरस्य न रह कर शोषण व्यवस्था का विरोध कसता है, तो उसका मूल्याङ्कन
करने वाला श्राचोचक ही उस संघषं से तरस्थ क्यों हो! क्या यह अधिक
स्वाभाविक नहीं है कि वह जितना ही जन-साधारण का पक्ष लेगा, उतना ही
जन-साधारण का पक्ष लेने वाले साहित्य का मूल भी वह समभेगा £ इसलिये न
तो साहित्यकार स्वभावतः प्रगतिशील होता है, न आलोचक | वे प्रगतिशील
तभी होते हैं जब वे जन-साधारण का पक्ष लेते हैं ।
चोहान ने “आलोचना” ( न॑० ५) में साहित्य और कला की यह
व्याख्या दी है, “साहित्य और कला वस्तु चित्रों तथा मानव-चरित्रों की भाषा
में जीवन के वैविध्यपूर्ण और परस्पर विरोधी सम्बन्धों और अन्तसंम्बन्धो के
यथार्थ को उसके गर्भ में विकासमान संभावनाओं की दृष्टि से मूते और कला-
त्मकं सूप में प्रतिबिंबित करती हैं। साहित्य और कला की क्ृतियाँ इसका
परिणाम होती है ।”
समाज के परस्पर विरोधी संबन्ध और उनके गभ में विकास-मान संभाव-
नाओं की हृष्टि--साहित्यकार के लिये दो चीजें आवश्यक हुई, एक तो
सामप््निकं यथार्थं जिसका वह चित्रण करेगा, दूसरी वह दृष्टि जिससे वह उस
यथार्थ को जाने पहचानेगा । लेकिन न तो हर साहित्यकार यथाथ को एक ही
दृष्टि से देखता है, न उससे एक सी सामग्री लेकर साहित्य में चित्रित करता
है । इसलिये चौहान की व्याख्या सभी साहित्य और सभी कला पर लागू नहीं
होती । यह व्याख्या साहित्य को स्वमावतः प्रगतिशील या स्वभावतः महान्
मान कर की गई है | लेकिन गैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, सभी साहित्य
प्रगतिशील या महान् नहीं होता ।
चौहान की व्याख्या में यह भी ध्यान देने की बात है कि सौन्दयैमूलक
प्रवृत्ति फिर गायब है | यहाँ केवल दृष्टिकोण, समाज के संबन्धों पर जोर है;
इनका माध्यम वस्तुचित्रों और मानव चरित्रों की भाषा है| पतानदहीयह भाषा
~^ ~~
User Reviews
No Reviews | Add Yours...